कभी कभी खो जाता हूँ ,
भ्रम में इतना कि
एहसास ही नहीं रहता कि
तुम एक परछाई हो..
पाता हूँ तुम्हें खुद से करीब
हाथ बढ़ा कर छूना चाहता हूँ.
हाथ आती है महज शून्यता .
स्वप्न भंग होता है ..
सत्य साबित होता है
क्षणभंगुर.
स्वप्न पुनः तारी होने लगता है.
पुनः आ खड़ी होती हो
नजरों के सामने ..
नीरज कुमार नीर
चित्र गूगल से साभार
इतनी अच्छी रचना
ReplyDeleteऔर नयी पुरानी हलचल में
लगातार
प्रकाशित हो रही है
साधुवाद
सादर
आपका पुनः आभार आदरणीय :)
Deleteसुंदर ....
ReplyDeleteये प्रेम है ...
ReplyDeleteगहरा एहसास लिए है रचना ...
सुन्दर सपने भी सच होते हैं कभी कभी वैसे सपने हमारे मन को शांत करते हैं
ReplyDeleteभ्रमर ५
कोमल प्रेम के एहसास लिये सुंदर रचना ....
ReplyDeleteVery beautiful composition indeed. So true also.
ReplyDeleteआपका हार्दिक धन्यवाद.
ReplyDeleteआपका हार्दिक धन्यवाद..
ReplyDeleteआपका हार्दिक धन्यवाद..
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रस्तुति ...!
ReplyDeleteRECENT POST आम बस तुम आम हो
bahut sundar ehsaas kii abhivyakti !
ReplyDeleteबेटी बन गई बहू
जब प्यार का नशा छाया हो दिल पर तो फिर अपनी सुध बुध कहाँ रहती है ...बहुत खूब!
ReplyDeleteबहत ही बढ़िया
ReplyDeleteसादर
वाह :)
ReplyDeleteकाश सब के साथ हो यह। स्वप्न का पुनः लौटना। सुंदर भाव।
ReplyDeleteएहसास ही नहीं रहता कि
ReplyDeleteतुम एक परछाई हो..
.
.very nice
पाता हूँ तुम्हें खुद से करीब
ReplyDeleteहाथ बढ़ा कर छूना चाहता हूँ.
हाथ आती है महज शून्यता .
स्वप्न भंग होता है ..
सत्य साबित होता है
क्षणभंगुर.
क्या गज़ब के शब्द लिखे हैं आपने नीर जी ! बहुत बहुत बधाई