Tuesday, 13 May 2014

स्वप्न और सत्य


कभी कभी खो जाता हूँ ,
भ्रम में इतना कि 
एहसास ही नहीं रहता कि 
तुम एक परछाई हो..
पाता हूँ तुम्हें खुद से करीब 
हाथ बढ़ा कर छूना चाहता हूँ.
हाथ आती है महज शून्यता .
स्वप्न भंग होता है ..
 सत्य साबित होता है
क्षणभंगुर.
स्वप्न पुनः तारी होने लगता है.
पुनः आ खड़ी होती हो
नजरों के सामने .. 

नीरज कुमार नीर
चित्र गूगल से साभार 

18 comments:

  1. इतनी अच्छी रचना
    और नयी पुरानी हलचल में
    लगातार
    प्रकाशित हो रही है
    साधुवाद
    सादर

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    Replies
    1. आपका पुनः आभार आदरणीय :)

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  2. ये प्रेम है ...
    गहरा एहसास लिए है रचना ...

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  3. सुन्दर सपने भी सच होते हैं कभी कभी वैसे सपने हमारे मन को शांत करते हैं
    भ्रमर ५

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  4. कोमल प्रेम के एहसास लिये सुंदर रचना ....

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  5. Very beautiful composition indeed. So true also.

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  6. आपका हार्दिक धन्यवाद.

    ReplyDelete
  7. आपका हार्दिक धन्यवाद..

    ReplyDelete
  8. आपका हार्दिक धन्यवाद..

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  9. जब प्यार का नशा छाया हो दिल पर तो फिर अपनी सुध बुध कहाँ रहती है ...बहुत खूब!

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  10. बहत ही बढ़िया


    सादर

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  11. काश सब के साथ हो यह। स्वप्न का पुनः लौटना। सुंदर भाव।

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  12. एहसास ही नहीं रहता कि
    तुम एक परछाई हो..
    .
    .very nice

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  13. पाता हूँ तुम्हें खुद से करीब
    हाथ बढ़ा कर छूना चाहता हूँ.
    हाथ आती है महज शून्यता .
    स्वप्न भंग होता है ..
    सत्य साबित होता है
    क्षणभंगुर.
    क्या गज़ब के शब्द लिखे हैं आपने नीर जी ! बहुत बहुत बधाई

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