अब भी तेरे आने से गुल बदलते होंगे रंग।
एक हम नहीं तो क्या साहेब पूरी महफिल तो है
अब भी तेरी मुस्कान पे सब होते होंगे दंग ।
नदी वही, सब पर्वत, सागर, शजर, आवो हवा वही
वही संदल की खुश्बू तुम्हें लगाते होंगे अंग ।
चातक के मिट जाने से चाँद कहाँ मिट जाता है
चाँद चाँदनी पूनम रातें रहते होंगे संग ।
अब भी तुम गाती होगी अब भी झरते होंगे फूल
बेरंग ख़िज़ाँ के मौसम मे भर जाते होंगे रंग ।
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(c) नीरज नीर
#neeraj neer
अभी गलती नहीं हुई है
ReplyDeleteहा हा हा हा ............. :)
Deleteसुन्दर रचना !
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है !
आभार ...
ReplyDeleteआभार ..
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति!
ReplyDeleteधरती की गोद
प्रेम भरी रचना ... कोमल सादगी भरे झरने सी ..
ReplyDeleteBahut sunder tareef ke shabd ...gazab prastuti !!
ReplyDeleteवाह बहुत सुंदर
ReplyDeleteउत्कृष्ट प्रस्तुति
सादर-----
बहुत खूब नीरज विरह के भावो को बड़ी खूबसूरती से गजल में पिरोया है आपने .. सुन्दर जलतरंग सी हँसी :-) विशेष सुन्दर लगी
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भावों से सजी रचना
ReplyDeleteआभार
कोमल भावनाओं का आलोड़न है आपकी यह रचना प्रतीकतत्व के अलावा भी इसमें कोमल संवेदनाएं हैं प्रेम के शरणागत होना है।
ReplyDeleteकोमल भावनाओं को सुन्दर शब्दों में झंकृत कर दिया --बहुत सुन्दर !
ReplyDeleteखुदा है कहाँ ?
कार्ला की गुफाएं और अशोक स्तम्भ
बहुत ही लाजवाब बात लिखी है आपने ........ उम्दा शेर है ......
ReplyDeleteवाह…हर शब्द में कुछ खास है... सुन्दर रचना
ReplyDeleteमनभावन कविता !
ReplyDeleteबहुत खूब ... संदल की खुशबू जैसी रचना
ReplyDeleteउदासी है मगर रोमानियत के साथ ... वाह
ati sundar ......
ReplyDeleteबहुत सुन्दर.....
ReplyDeleteसुंदर गजल!
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