कहो प्रिय , कैसे सराहूँ
मैं सौंदर्य तुम्हारा.
मैं चाहता हूँ.
तुम्हारे मुख को कहूँ माहताब
अधरों को कहूँ लाल गुलाब
महकती केश राशि को संज्ञा दूँ
मेघ माल की
लहराते आँचल को कहूँ
मधु मालती
पर, अपवर्तन का अपना नियम है
मेरी दृष्टि गुजरती है,
तुम तक पहुचने से पहले
संवेदना के तल से,
और हो जाती है अपवर्तित
सड़क किनारे डस्टबिन में
खाना ढूंढते व्यक्ति पर,
प्लेटफार्म पर भीख मांगते
चिक्कट बालों वाली
छोटी लड़की पर..
देश के भविष्य से खेलते
झूठे वादे और बकवाद करते नेताओं पर.
मेरी संवेदना तुम्हें शायद
अर्थ हीन लगे, पर
यही है मेरा सत्य,
मेरा तल.
कहो प्रिय, कैसे सराहूँ
मैं सौंदर्य तुम्हारा..
नीरज कुमार ‘नीर’
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#hindi_poem #gulab #प्लैटफ़ार्म #हिन्दी_कविता #अपवर्तन
The hard facts of life...well expressed :)
ReplyDeleteबहुत सुंदर अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteनयी पुरानी हलचल का प्रयास है कि इस सुंदर रचना को अधिक से अधिक लोग पढ़ें...
ReplyDeleteजिससे रचना का संदेश सभी तक पहुंचे... इसी लिये आप की ये खूबसूरत रचना दिनांक 22/05/2014 को नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही है...हलचल में आप भी सादर आमंत्रित है...
[चर्चाकार का नैतिक करतव्य है कि किसी की रचना लिंक करने से पूर्व वह उस रचना के रचनाकार को इस की सूचना अवश्य दे...]
सादर...
चर्चाकार कुलदीप ठाकुर
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आभार कुलदीप ठाकुर जी .
Deleteबहुत सुन्दर लिखा है आपने .. मौजू और सार्थक ..... बधाई
ReplyDeleteकवि ह्रदय की दुविधा एवं यथार्थ की विसंगतियों को बहुत ही संवेदनशीलता के साथ आपने अभिव्यक्त किया है ! बहुत ही सुंदर रचना !
ReplyDeleteबहुत ही खूबसूरत रचना !! कवि के संवेदनशील ह्रदय में प्यार के गीत के लिए सामाजिक स्थिति दुविधा बन रही है...
ReplyDeleteमन के द्वन्द को सुन्दर अभिव्यक्ति दी है आपने.
ReplyDeleteकवी की कल्पना जहां जा कर लहुलुहान हो जाती है वहां से ये सब उपमाएं व्यर्थ लगने लगती हैं ...
ReplyDeleteअंतर्द्व्न्द प्रकट करती संवेदनशील प्रस्तुति
ReplyDeleteसमय पर बढ़िया अभिव्यक्ति !
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रेमाभिव्यक्ति १
ReplyDeleteNew post मोदी सरकार की प्रथामिकता क्या है ?
new post ग्रीष्म ऋतू !
सामयिक विषय को बड़ी गंभीरता से लिखा आपने
ReplyDeleteबहुत बढ़िया
साभार !
और भी गम हैं जमाने में। बहुत सुंदर अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति
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