Sunday, 18 May 2014

सत्य की राह


सत्य की राह
होती है अलग,
अलग, अलग लोगों के लिए.
किसी का श्वेत ,
श्याम होता है किसी के लिए .
श्वेत श्याम के झगड़ें में
जो गुम  होता है
वह होता है सत्य,
सत्य सार्वभौमिक है,
पर सत्य नहीं हो सकता
सामूहिक .
सत्य निजता मांगता है ,
हरेक का सत्य
तय होता है
निज अनुभूति से.
......
... नीरज कुमार नीर 
चित्र गूगल से साभार 

9 comments:

  1. सत्य वैसे तो शाश्वत, एक ही होता है ... हर किसी की दृष्टि अलग होती है ... जो अपना अपना सत्य निर्धारित करती है ...

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  2. दार्शनिक सोच, बहुत अच्छी रचना, बधाई.

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  3. बहुत बढ़िया प्रस्तुति !!

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  4. कथ्य और अभिव्यक्ति दोनों ही लाजवाब.

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  5. एकदम सच और सार्थक शब्द नीर साब

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