सत्य की राह
होती है अलग,
अलग, अलग लोगों के लिए.
किसी का श्वेत ,
श्याम होता है किसी के लिए .
श्वेत श्याम के झगड़ें में
जो गुम होता है
वह होता है सत्य,
सत्य सार्वभौमिक है,
पर सत्य नहीं हो सकता
सामूहिक .
सत्य निजता मांगता है ,
हरेक का सत्य
तय होता है
निज अनुभूति से.
......
... नीरज कुमार नीर
चित्र गूगल से साभार
सुन्दर......
ReplyDeleteवाह :)
ReplyDeleteबहुत सुन्दर !
ReplyDeletelatest post: रिस्ते !
सत्य वैसे तो शाश्वत, एक ही होता है ... हर किसी की दृष्टि अलग होती है ... जो अपना अपना सत्य निर्धारित करती है ...
ReplyDeleteBehtreen. achhaa laga
ReplyDeleteदार्शनिक सोच, बहुत अच्छी रचना, बधाई.
ReplyDeleteबहुत बढ़िया प्रस्तुति !!
ReplyDeleteकथ्य और अभिव्यक्ति दोनों ही लाजवाब.
ReplyDeleteएकदम सच और सार्थक शब्द नीर साब
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