कुत्ते का बच्चा
गया मर,
एड़ियाँ रगड़,
किसे फिकर,
काली चमकती सड़क,
चलती गाड़ियाँ बेधड़क,
बैठा हाकिम अकड़,
कलफ़ कड़क,
सड़क पर किसका हक़?
क्यों रहा भड़क?
किसके लिए बनी
काली चमकती सड़क?
कुत्ता कितना कुत्ता है
चला आता है,
धुल भरी पगडंडियां
गाँव की
छोड़कर.
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.. नीरज कुमार नीर
(नोट :कृपया कुत्ते शब्द से किसी जानवर का संदर्भ न लें )
आप की ये खूबसूरत रचना...
ReplyDeleteदिनांक 07/07/2014 की नयी पुरानी हलचल पर लिंक की गयी है...
आप भी इस हलचल में सादर आमंत्रित हैं...आप के आगमन से हलचल की शोभा बढ़ेगी...
सादर...
कुलदीप ठाकुर...
इंसानों का भी चलना दूभर है इन सड़कों पर ... किसे है परवाह आज इन कुत्तों की ...
ReplyDeleteसार्थक रचना ...
बहुत सुन्दर कविता
ReplyDeletehahaha.. agar aapne neche ye note naa dala hota ki kutte se kisi janwar ka sandarbh naa le toh main ise jaanwar ke baare mein hi samajhti .. sahi kahaa aapne ki sadak kinaare rahne wale insan ya jaanwar mein fark kya rah gaya hai.
ReplyDeleteह्रदय में गयी आपकी यह रचना.
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteसराहनीय
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