वर्तमान समय में होली का एक पक्ष यह भी है कि होली के अवसर पर दिल्ली सहित अन्य जगहों पर काम करने वाले विभिन्न प्रदेशों खास कर पूर्वी यू पी , बिहार , झारखंड आदि से आए लोग होली के अवसर पर अपने मूल पैतृक निवास की ओर रूख करते हैं। ट्रेनों में भारी भीड़ भाड़ देखनों को मिलती है, लेकिन सभी विघ्न बाधाओं को पार कर ये लोग अपने परिवार जनों से मिलने की अतिशय आकांक्षा लिए निकल पड़ते हैं एवं उन्हें देखकर उनके परिवार के लोगों की भी होली की खुशियाँ दूनी हो जाती है । प्रस्तुत है इसी विषय पर कुछ दोहे :
पंछी उड़े स्वदेश को, छोड़ परायी नीड़ ।
आई होली बढ़ गयी, अब ट्रेनन में भीड़ ॥
तन भूखे जिनके रहे, देश छोड़ के जाय।
जगे प्रेम की भूख तो, आपन देश बुलाय ॥
मात पिता बंधु भगिनी, पत्नी प्यारा पूत।
खुशियाँ ले सबके लिए, घर को चला सपूत ॥
पहुचोगे जब गाँव को, फाग में होगा रँग ।
पीपल बरगद पोखरा, आँगन गली उमंग॥
चैत मास बड़ा निर्दय , घर सूना कर जाय ।
अपने घर का लाड़ला, आन देश को जाय॥
..................... नीरज कुमार नीर
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बहुत भावमय सभी दोहे ... त्योहारों में तो सब को घर की याद सताती है ...
ReplyDeleteसचमुच त्यौहार अपनों के साथ ही सुहाते हैं। बहुत सुन्दर रचना … रंगोत्सव होली की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं ...
ReplyDeleteसही बयां किया आपने.......होली की हार्दिक शुभकामनाएं
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