Tuesday 26 May 2015

हिम सागर

जब मैं जन्मा तो था एक झरना
कल कल करता उछल कूद मचाता हुआ
अशांत पर निश्चिन्त ।
फिर हुआ एक चंचल, अधीर नदी
अनवरत आगे बढ़ने की प्रवृति, उतावलापन
मुझे नियंत्रित करती रही मजबूत धाराएँ ।
और अब सागर बनने की राह पर हूँ
ऊपर ऊपर धाराएँ अब भी
नियंत्रित करने का प्रयास करती हैं
पर भीतर भीतर शांत
बनना चाहता हूँ
धीरे धीरे मैं  हिम सागर
बिलकुल ठोस
जिसकी प्रकृति एक सी होगी
अंदर बाहर
सघन शांत ।
नीरज कुमार नीर ...
(c) #neeraj_kumar_neer

Thursday 21 May 2015

आकाशवाणी के रांची केंद्र से नीरज कुमार नीर के काव्य पाठ के प्रसारण की रिकॉर्डिंग





19.05.2015 को आकाशवाणी के रांची केंद्र से मेरे काव्य पाठ का प्रसारण हुआ ..... उसी की रिकॉर्डिंग आपसे शेयर कर रहा हूँ .... नीचे दिये लिंक को क्लिक कर आप इसे सुन सकते हैं :

                                         सुनने के लिए यहाँ क्लिक करें 
#neeraj_kumar_neer

Saturday 16 May 2015

पास तेरे रहूँ वक्त ठहर जाता है

पास  तेरे रहूँ   वक्त  ठहर  जाता   है
दुख दर्द गम जाने सब किधर जाता है ।

घड़ी खो देती मुसल्सल अपने मायने
कब रात  होती  है दिन उतर जाता है ।

बिगड़ी तो कब क्या बनेगी खुदा जाने
इक  पल फिर भी मेरा संवर जाता है।

जो हो होशमंद उसे वक्त का ख्याल हो
मुझे क्या वक्त कब आकर गुजर जाता है ।

हिले जो चिलमन-ए-दरिचाँ-ए-महबूब
रू –ए –आशिक देखिये निखर जाता है ।

खुले दर-ए-खुल्द दस्त से जो दस्त मिले
दौरे  गम खुशियों   में  बदल  जाता  है ।
-------------- नीरज कुमार नीर
#neeraj_kumar_neer

Tuesday 12 May 2015

फूल खिले खुशियों के खेली बहार इस आँगन में

अपनी शादी की सालगिरह पर प्रस्तुत :::::
-----------------------------
फूल खिले खुशियों के खेली बहार इस आँगन में
धरा जबसे पाँव प्रिय तुमने जीवन के कानन में ॥

धन्यता हमारी थी जो तुमने हमे स्वीकार किया
मेरे गुण दोषों के संग मुझको अंगीकार किया
दुर्लंघ्य पर्वत विपदा के आए जीवन राह में
यह सम्बल तुम्हारा था हंसकर हमने पार किया
रंग बिरंगी  खिली रौशनी वन प्रांतर निर्जन में ॥

फूल खिले खुशियों के खेली बहार इस आँगन में
धरा जबसे पाँव प्रिय तुमने जीवन के कानन में ॥

पूंज ज्योति की तुम बनी जब तम ने जीवन को घेरा
हाथ पकड़  बाहर लायी जब दुखों ने मुझको हेरा
मात पिता निज गृह को तज मम गृह को आधार किया
बाँहें तुम्हारी सर्वदा प्रिय रही सुखों का डेरा
मास बारह वर्ष के भींगा प्रीत के सावन में ॥

फूल खिले खुशियों के खेली बहार इस आँगन में
धरा जबसे पाँव प्रिय तुमने जीवन के कानन में॥
.............. नीरज कुमार नीर ..........
#neeraj_kumar_neer

Thursday 7 May 2015

क्या होगा तब ?

जब करूंगा अंतिम प्रयाण
ढहते हुए भवन को छोडकर
निकलूँगा जब बाहर
किस माध्यम से होकर गुज़रूँगा ?
वहाँ हवा होगी या निर्वात होगा?
होगी गहराई या ऊंचाई में उड़ूँगा
मुझे ऊंचाई से डर लगता है
तैरना भी नहीं आता
क्या यह डर तब भी होगा
मेरा हाथ थामे कोई ले चलेगा
या मैं अकेले ही जाऊंगा
चारो ओर होगा प्रकाश
या अंधेरे ने मुझे घेरा होगा
मुझे अकेलेपन और अंधकार से भी डर लगता है
क्या यह डर तब भी होगा?
भय तो विचारों से होते हैं उत्पन्न
क्या विचार तब भी मेरा पीछा करेंगे ?
लक्ष्य सुज्ञात होगा
या भटकूंगा लक्ष्यहीन
क्या होगा तब ?
,,,,,,,,,, नीरज कुमार नीर ........  #neeraj_kumar_neer

Tuesday 5 May 2015

राजपथ तक पहुंचाते हाथ

तुम सरपट दौड़ना चाहते हो
राजपथ पर
रास्ते जो पहुचाएंगे राजपथ तक
कांटो से भरे, गीले, दलदली हैं
तुम्हारे फूल से पैरों को अपनी हथेलियों पर उठाने
कई हाथ उभर कर आते हैं अज्ञात से
अनायास, अकस्मात
कुछ हाथों की ओर तुम पाँव बढ़ाते हो स्वयं ही
राजपथ तक पहुँचना चाहते हो
बिना छिले , बिना लस्त पस्त हुए
जिन हाथों पर पाँव रख कर
तुम आगे बढ़ना चाहते हो
उनमे कई बढ़ते हैं
केवल फूलों को छूने की कामना से
कहीं गिरा न दें तुम्हें काँटों पर
मुझे भय नहीं है
पंखुड़ियों के टूट कर बिखर जाने का
मुझे भय इस बात का है कि कहीं
टूट न जाये तुम्हारा
राजपथ तक पहुचने का
हौसला
मैं देखना चाहता हूँ तुम्हें
स्वर्ण सिंहासन पर
रत्न जड़ित मुकुट पहने हुए
........... नीरज कुमार नीर ............ #neeraj_kumar_neer

Sunday 3 May 2015

Fear

My heart keeps sinking,
I am afraid of
death and losing everything.
One day,
I may lose all and
 may have nothing.
But I’ll have
My conscience,
 my courage
But  no bondage.
Out of every bond
and no more
in any cage.
I’ll be free of
the bond of desire,
the reason of sorrow
But for,
I did always perspire.
..... neeraj kumar neer

Saturday 2 May 2015

You and me are one

In the eternity of peace,

In the serenity of silence,

In the boundless light

Sparkling and bright.

In the fragrance of love,

In the freedom of dove,

where ends transiency,

where ends mortality,

There lies reality.

You and me become

none but only one

"Neeraj Kumar Neer "


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