जब मैं जन्मा तो था एक झरना
कल कल करता उछल कूद मचाता हुआ
अशांत पर निश्चिन्त ।
फिर हुआ एक चंचल, अधीर नदी
अनवरत आगे बढ़ने की प्रवृति, उतावलापन
मुझे नियंत्रित करती रही मजबूत धाराएँ ।
और अब सागर बनने की राह पर हूँ
ऊपर ऊपर धाराएँ अब भी
नियंत्रित करने का प्रयास करती हैं
पर भीतर भीतर शांत
बनना चाहता हूँ
धीरे धीरे मैं हिम सागर
बिलकुल ठोस
जिसकी प्रकृति एक सी होगी
अंदर बाहर
सघन शांत ।
नीरज कुमार नीर ...
(c) #neeraj_kumar_neer
कल कल करता उछल कूद मचाता हुआ
अशांत पर निश्चिन्त ।
फिर हुआ एक चंचल, अधीर नदी
अनवरत आगे बढ़ने की प्रवृति, उतावलापन
मुझे नियंत्रित करती रही मजबूत धाराएँ ।
और अब सागर बनने की राह पर हूँ
ऊपर ऊपर धाराएँ अब भी
नियंत्रित करने का प्रयास करती हैं
पर भीतर भीतर शांत
बनना चाहता हूँ
धीरे धीरे मैं हिम सागर
बिलकुल ठोस
जिसकी प्रकृति एक सी होगी
अंदर बाहर
सघन शांत ।
नीरज कुमार नीर ...
(c) #neeraj_kumar_neer
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति कविवर नीरज जी ।
ReplyDeleteआपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन जयंती - प्रोफ़ेसर बिपिन चन्द्र और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
ReplyDeleteखूबसूरत।
ReplyDeleteबेहद खूबसूरत शब्दों से सजी हुई रचना।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति, और क्या खूब भाव... वाह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह
ReplyDeleteजीवन के चक्र को उतार दिया इन शब्दों में नीरज जी ...
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