भारत एक अफवाहों से पीड़ित देश है. कोई भी बात पल भर में वायरल हो सकती है. कई बार मार्क ज़ुकेरबर्ग का सन्देश इतने आत्मविश्वास के साथ शेयर किया जात है मानो उन्हें शेयर करने वाले ने प्रत्यक्ष प्रमाण किया है. ऐसा करने वाले अधिकतर पढ़े लिखे लोग होते हैं या कम से कम जो मुझे भेजते हैं वे स्वघोषित बुद्धिजीवि एवं देश, समाज के लिए बड़े चिंतित दिख रहे लोग होते हैं. लेकिन वे ज़रा ठहर कर ये नहीं सोचते कि अगर whatsapp या फेसबुक को अपने सब्सक्राइबर को कोई मेसेज देना होगा तो एक क्लिक से सीधे सबको यह सन्देश पहुँचा देगा उसे उनके जैसे लोगों की बीच में जरूरत नहीं होगी. लेकिन लोग शेयर करते हैं, अंधाधुंध शेयर करते हैं.
भारत के पढ़े लिखे लोगों में भेड़ चाल अधिक है. शायद उन्हें यह डर सताता है कि किसी बात पर अगर उन्होंने प्रतिक्रिया नहीं दी या अन्य लोगों की तरह नहीं दिखे तो वे पीछे छूट जायेंगे.
ऐसे अफवाहों के माध्यम से विशिष्ट उद्देश्य के हेतू किसी भी घटना विशेष को एक एजेंडा के तहत प्रचारित प्रसारित करके, मीडिया को मैनेज करके देश भर में आन्दोलन फैलाकर देश को अस्थिर करने की कोशिश की जाती है इसमें सोशल मीडिया का भी बड़ा योगदान होता है.
दो समुदाय के लोगों के बीच नफरत फैलाकर एक समुदाय विशेष को यह अनुभव करवाया जाता है कि वे दूसरे समुदाय के द्वारा ज्यादतियों के शिकार हो रहे हैं एवं इस तरह उनका ध्रुवीकरण किया जाता है लेकिन इसके परिणामस्वरुप लोग अक्सर जो स्वयं को विवेकशील कहते हैं बिना किसी विवेक एवं तर्क का प्रयोग किये उद्वेलित हो उठते हैं. ताज़ा उदाहरण जम्मू में हुई घटना का है. वहां जो हुआ वह हर तरह से निंदनीय है एवं सजा के योग्य है . कानून को इस बारे में बिना शक सख्त से सख्त कारवाई करनी चाहिए. ह्त्या या बलात्कार किसी का भी हो सजा के योग्य है. पर जो लोग राजनैतिक फायदे या किसी भी ज्ञात, अज्ञात कारणों से समाज को अस्थिर करना चाहते हैं उन्हें किसी की ह्त्या या किसी को सजा से कोई लेना देना नहीं है. वे बस ध्रुवीकरण में लगे हैं.
पर इस बारे में लोग अंधाधुंध प्रतिक्रिया दे रहे है, बिना यह सोचे कि वे किसी और के द्वारा सेट किये गए एजेंडा के शिकार भर हैं. कितने लोगों को मालूम है कि कठुआ में बच्ची की हत्या 8 या 9 जनवरी 18 को हुई? तीन महीने तक कोई स्वतः स्फूर्त आन्दोलन खड़ा नहीं हुआ. अचानक से मध्य अप्रैल में लोगों को पता चलता है कि एक मंदिर में एक मुस्लिम बच्ची का बलात्कार हिन्दुओं के द्वारा किया गया है. किसी को अपने हिन्दू होने पर लज्जा आ रही है, किसी को अपने आदमी होने पर. कोई धर्म को गाली दे रहा है कोई समाज को. लोग जजमेंटल हो रहे हैं. तरह तरह की तस्वीरें जारी की जा रही है. त्रिशूल को कंडोम पहनाया जा रहा है तो कहीं त्रिशूल को स्त्री योनि में घोंपा हुआ दिखाया जा रहा है. कोई अपनी प्रोफाइल काली कर रहा है तो कोई प्रोफाइल में क्रॉस लगा रहा है. पूरे हिन्दू समाज को कठघरे में खड़ा करने का प्रयास किया जा रहा है. और ऐसा कर कौन रहा है? ऐसा हिन्दू ही कर रहे हैं. एक मशीन की तरह वे प्रतिक्रिया दे रहे हैं. श्रीनगर से लेकर सुदूर केरल तक मार्च निकाले जा रहे है. क्या आपको ऐसा नहीं लग रहा है कि दो से तीन दिनों के अन्दर इतने बड़े देश में इतना बड़ा आन्दोलन इसलिए खड़ा हो गया क्योंकि इसकी पूर्व से ही तैयारी थी.
आप किसी दिन का अखबार उठा कर देखें. राँची जैसे शहर में निकलने वाले अखबार में दो- तीन बलात्कार की खबरें रोज़ होती है. लेकिन खबर में पीड़िता का नाम या तो दिया नहीं जाता या बदल दिया जाता है . बलात्कारी भी अगर पीड़िता से अलग धर्म का है तो उसका नाम भी नहीं प्रकाशित किया जाता है. लेकिन कठुआ वाले केस में ऐसा क्यों नहीं किया गया? क्यों खबर को इस तरह प्लांट किया गया कि मुस्लिम बच्ची का बलात्कार हिन्दुओं के द्वारा किया गया? क्या यह देश में बलात्कार एवं ह्त्या की पहली घटना थी? क्या किसी मुस्लिम के द्वारा कभी किसी हिन्दू लड़की का बलात्कार नहीं किया गया या कभी किसी मस्जिद में बलात्कार नहीं हुआ? मैं व्यक्तिगत रूप से एक घटना जानता हूँ जिसमें एक औरत एक मस्जिद में मौलवी से झाड फूंक करवाने गयी और वहाँ उसका बलात्कार किया गया. इतने बड़े देश में क्या यह कोई असाधारण घटना है ? ज़रा तर्कसंगत रूप से सोचिये एवं अपने विवेकशील होने का परिचय दीजिये. किसी और के द्वारा सेट किये गए एजेंडे का शिकार मत बनिए. सरकारें आती जाती रहेगी पर देश और समाज का बने रहना जरूरी है.
आज जबकि भारत को अस्थिर करने की बड़ी साजिशें हो रही हैं. देश विदेश में स्थित ताक़ते एवं विदेश में हायर की गयी एजेंसीज अपना प्राणपन लगा रही है वैसे में अत्यधिक सावधानी जरूरी है.
एक सोची समझी साजिश के तहत मुस्लिमों के मन में यह भय भरने की कोशिश की जा रही है कि हिन्दू उनपर अत्याचार कर रहे हैं, उनकी बेटियों का बलात्कार किया जा रहा है. हालांकि इसका त्वरित उद्देश्य उनका ध्रुवीकरण करके चुनावी लाभ उठाना भर है पर इसका दूरगामी परिणाम बहुत ही भयानक हो सकता है. इसलिए समाज के सभी वर्गों से मेरा अनुरोध है कि किसी भी बात को आगे बढ़ाने या उसपर एक्ट करने से पूर्व सोचिये समझिये और फिर आचरण कीजिये.
#neeraj_neer
#kathua
#social_media
#Asifa
#J&K
भारत के पढ़े लिखे लोगों में भेड़ चाल अधिक है. शायद उन्हें यह डर सताता है कि किसी बात पर अगर उन्होंने प्रतिक्रिया नहीं दी या अन्य लोगों की तरह नहीं दिखे तो वे पीछे छूट जायेंगे.
ऐसे अफवाहों के माध्यम से विशिष्ट उद्देश्य के हेतू किसी भी घटना विशेष को एक एजेंडा के तहत प्रचारित प्रसारित करके, मीडिया को मैनेज करके देश भर में आन्दोलन फैलाकर देश को अस्थिर करने की कोशिश की जाती है इसमें सोशल मीडिया का भी बड़ा योगदान होता है.
दो समुदाय के लोगों के बीच नफरत फैलाकर एक समुदाय विशेष को यह अनुभव करवाया जाता है कि वे दूसरे समुदाय के द्वारा ज्यादतियों के शिकार हो रहे हैं एवं इस तरह उनका ध्रुवीकरण किया जाता है लेकिन इसके परिणामस्वरुप लोग अक्सर जो स्वयं को विवेकशील कहते हैं बिना किसी विवेक एवं तर्क का प्रयोग किये उद्वेलित हो उठते हैं. ताज़ा उदाहरण जम्मू में हुई घटना का है. वहां जो हुआ वह हर तरह से निंदनीय है एवं सजा के योग्य है . कानून को इस बारे में बिना शक सख्त से सख्त कारवाई करनी चाहिए. ह्त्या या बलात्कार किसी का भी हो सजा के योग्य है. पर जो लोग राजनैतिक फायदे या किसी भी ज्ञात, अज्ञात कारणों से समाज को अस्थिर करना चाहते हैं उन्हें किसी की ह्त्या या किसी को सजा से कोई लेना देना नहीं है. वे बस ध्रुवीकरण में लगे हैं.
पर इस बारे में लोग अंधाधुंध प्रतिक्रिया दे रहे है, बिना यह सोचे कि वे किसी और के द्वारा सेट किये गए एजेंडा के शिकार भर हैं. कितने लोगों को मालूम है कि कठुआ में बच्ची की हत्या 8 या 9 जनवरी 18 को हुई? तीन महीने तक कोई स्वतः स्फूर्त आन्दोलन खड़ा नहीं हुआ. अचानक से मध्य अप्रैल में लोगों को पता चलता है कि एक मंदिर में एक मुस्लिम बच्ची का बलात्कार हिन्दुओं के द्वारा किया गया है. किसी को अपने हिन्दू होने पर लज्जा आ रही है, किसी को अपने आदमी होने पर. कोई धर्म को गाली दे रहा है कोई समाज को. लोग जजमेंटल हो रहे हैं. तरह तरह की तस्वीरें जारी की जा रही है. त्रिशूल को कंडोम पहनाया जा रहा है तो कहीं त्रिशूल को स्त्री योनि में घोंपा हुआ दिखाया जा रहा है. कोई अपनी प्रोफाइल काली कर रहा है तो कोई प्रोफाइल में क्रॉस लगा रहा है. पूरे हिन्दू समाज को कठघरे में खड़ा करने का प्रयास किया जा रहा है. और ऐसा कर कौन रहा है? ऐसा हिन्दू ही कर रहे हैं. एक मशीन की तरह वे प्रतिक्रिया दे रहे हैं. श्रीनगर से लेकर सुदूर केरल तक मार्च निकाले जा रहे है. क्या आपको ऐसा नहीं लग रहा है कि दो से तीन दिनों के अन्दर इतने बड़े देश में इतना बड़ा आन्दोलन इसलिए खड़ा हो गया क्योंकि इसकी पूर्व से ही तैयारी थी.
आप किसी दिन का अखबार उठा कर देखें. राँची जैसे शहर में निकलने वाले अखबार में दो- तीन बलात्कार की खबरें रोज़ होती है. लेकिन खबर में पीड़िता का नाम या तो दिया नहीं जाता या बदल दिया जाता है . बलात्कारी भी अगर पीड़िता से अलग धर्म का है तो उसका नाम भी नहीं प्रकाशित किया जाता है. लेकिन कठुआ वाले केस में ऐसा क्यों नहीं किया गया? क्यों खबर को इस तरह प्लांट किया गया कि मुस्लिम बच्ची का बलात्कार हिन्दुओं के द्वारा किया गया? क्या यह देश में बलात्कार एवं ह्त्या की पहली घटना थी? क्या किसी मुस्लिम के द्वारा कभी किसी हिन्दू लड़की का बलात्कार नहीं किया गया या कभी किसी मस्जिद में बलात्कार नहीं हुआ? मैं व्यक्तिगत रूप से एक घटना जानता हूँ जिसमें एक औरत एक मस्जिद में मौलवी से झाड फूंक करवाने गयी और वहाँ उसका बलात्कार किया गया. इतने बड़े देश में क्या यह कोई असाधारण घटना है ? ज़रा तर्कसंगत रूप से सोचिये एवं अपने विवेकशील होने का परिचय दीजिये. किसी और के द्वारा सेट किये गए एजेंडे का शिकार मत बनिए. सरकारें आती जाती रहेगी पर देश और समाज का बने रहना जरूरी है.
आज जबकि भारत को अस्थिर करने की बड़ी साजिशें हो रही हैं. देश विदेश में स्थित ताक़ते एवं विदेश में हायर की गयी एजेंसीज अपना प्राणपन लगा रही है वैसे में अत्यधिक सावधानी जरूरी है.
एक सोची समझी साजिश के तहत मुस्लिमों के मन में यह भय भरने की कोशिश की जा रही है कि हिन्दू उनपर अत्याचार कर रहे हैं, उनकी बेटियों का बलात्कार किया जा रहा है. हालांकि इसका त्वरित उद्देश्य उनका ध्रुवीकरण करके चुनावी लाभ उठाना भर है पर इसका दूरगामी परिणाम बहुत ही भयानक हो सकता है. इसलिए समाज के सभी वर्गों से मेरा अनुरोध है कि किसी भी बात को आगे बढ़ाने या उसपर एक्ट करने से पूर्व सोचिये समझिये और फिर आचरण कीजिये.
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