Saturday, 17 October 2015

सत्य का बोध

तेजी से घूम रहे चक्र पर
हम ठेल दिये गए हैं
किनारों की ओर
जहां
महसूस होती है सर्वाधिक
इसकी गति
ऊंची उठती है उर्मियाँ
जैसे जैसे हम बढ़ते हैं
केंद्र की ओर
सायास
स्थिरता बढ़ती जाती है
प्रशांत हो जाती है तरंगे
सत्य का बोध
अनावृत होने लगता है
अनुभव होता है एकात्म का ....
.............. नीरज कुमार नीर
#neeraj_kumar_neer
#satya #hindi_poem
#एकात्म #अनुभव 

5 comments:

  1. उत्कृष्ट प्रस्तुति

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (18-10-2015) को "जब समाज बचेगा, तब साहित्य भी बच जायेगा" (चर्चा अंक - 2133) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. सुन्दर कविता।

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  4. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, दिमागी हालत - ब्लॉग बुलेटिन , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  5. गंभीर शब्दों से सुसज्जित सुन्दर प्रस्तुति कविवर नीर साब !!

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आपकी टिप्पणी मेरे लिए बहुत मूल्यवान है. आपकी टिप्पणी के लिए आपका बहुत आभार.

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