Thursday, 16 February 2012

“दुष्यंत तेरे देश में”

दुष्यंत तेरे देश में,
इंसानों के वेश में,
फिरते हैं शैतान.
प्रेम को समझ पाते नहीं
करते इसे बदनाम.
तरुण ह्रदय पर रोक लगा कर,
संस्कृति की बोझ बढाकर,
प्रेम अभिव्यक्ति को
रोकना चाहे   
हो रहे हैरान .
दुष्यंत तेरे देश में
इंसानों के वेश में
फिरते हैं शैतान,
प्रेम को समझ पाते नहीं
करते इसे बदनाम.
प्रेम तो बहता जल है,
आने वाला कल है,
कौन रोक सकेगा इसको
साधू है या खल है?
भूल गए
शकुंतला दुष्यंत को,
भूल गए
कलिदास  का अभिज्ञान,
दुष्यंत तेरे देश में
इंसानों के वेश में
फिरते हैं शैतान.
प्रेम को समझ पाते नहीं
करते इसे बदनाम.
शकुंतला दुष्यंत की प्रेम कहानी
भरत की वो अमर जवानी
गर्व करते हो
लेकर जिसका नाम .
दुष्यंत तेरे देश में
इंसानों के वेश में,
फिरते हैं शैतान.
प्रेम को समझ पाते नहीं
करते इसे बदनाम.
क्या दुष्यंत का प्रेम गलत था ?
क्या शांतनु थे नहीं महान?
क्या कृष्ण का रास गलत था?
गलत थे क्या पृथ्वी राज चौहान ?
               
                       


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