चंचल, चपल
गरजत, लपकत
सुन्दर, श्याम, मनोहारी .
तन मन दोनों
भींगे भींगे
दृश्य लागत हृदयहारी
हर्षित, मुदित
मादक, मनमोहक
श्याम वरण की ओढ़े चादर
छाये बदरा कारी कारी
चंचल, चपल
गरजत, लपकत
सुन्दर, श्याम, मनोहारी
बिरह वेदना में तड़पे ‘नीरज’
आयी याद तिहारी.
मेघ वर्ण से केश तुम्हारे
अंखियाँ तेरी कजरारी
चंचल, चपल
गरजत, लपकत
सुन्दर, श्याम, मनोहारी
घनीभूत नभ के प्रांगण से
निरखत, गरजत,
बरसत, लथपथ
तड़, तड़, तड़, तड़,
झर, झर , झर, झर .
पिया मिलन के विरह में तडपत
विरहन के नयनन से बरसत
जैसे अश्रु सर,सर, सर, सर .
चंचल, चपल
गरजत, लपकत
सुन्दर, श्याम, मनोहारी
तन मन दोनों
भींगे भींगे
दृश्य लागत हृदयहारी .
..नीरज कुमार 'नीर'
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