नभ के नीले आंगन में,
विचर रहा एक मेघ –खंड ,
आवृत करने रवि पुंज को
कर रहा उद्यम.
सहकर उष्णता का उत्ताप
गगन के विस्तार को रहा माप .
वेध रही तीक्ष्ण किरणें रवि की,
पर आतुर बांधने को रवि का प्रताप.
देखो! प्रमिलित हुआ रवि ,
सफल हुआ मेघ का उद्यम
दिल में लगन हो सच्ची अगर
निष्फल नहीं होता प्रयत्न .
....... नीरज कुमार 'नीर'
दिल में लगन हो सच्ची अगर
ReplyDeleteनिष्फल नहीं होता प्रयत्न .
बिलकुल सच्ची बात ! बहुत सुन्दर रचना !
बहुत सुन्दर रचना....
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ReplyDeleteएकदम बढ़िया