Wednesday 25 April 2012

हौसला


मुर्दों की बस्ती में
जीवन तलाश रहा हूँ
नंगे हाथों से
पत्थर तराश  रहा हूँ.

मेरे हाथ लहूलुहान हैं
मूझे गम नहीं है
मेरा हौसला यारों
मगर कम नहीं है.

अपने हौसलों से
मुर्दों में जान फुकुंगा
जब तक सफल नहीं होता
तब तक नहीं रुकुंगा

तपती दुपहरी है
सामने सहरा है
जुबां पर भी मेरे
हुकूमत का पहरा है.

पावों में छाले हैं
ओठ प्यासे हैं
हाकिमों के पास
झूठे दिलासे  है .

हर कदम पे सफलता की
नई इबारत लिखूंगा
बीच राहों में मगर
नहीं कभी रुकूंगा.
.......... नीरज कुमार 'नीर' 

Sunday 8 April 2012

“रुखसार”



तीर कमान सी भवें तेरी
नैन तेरे कटार
तेरी अदा पे मर गया नीरज
शाहे गुल रुखसार
मेरे चमन की फूल हो तुम
करता हूँ इकरार
तेरी एक हसीं से जानम
आ जाती है बहार
सुर्ख गुलाबी होठ तुम्हारे
ले गए चैन करार
तेरा आंचल जब लहराए
बहे वासंती बयार .
तेरी अदा पे मर गया ‘नीरज’
शाहे –गुल रुखसार.
................. नीरज कुमार 'नीर'

हर्ष और विषाद


सूखे खेतों की दरारें,
और किसानो के फटें होठ,
बता रहें है की दोनों को,
बहुत दिनों से नमी नसीब नहीं .

छप्पर वाले घर से निकलता धुआं
आज कई दिनों बाद
उस घर में जला है चूल्हा

उस घर के मालिक की
भुखमरी से मौत हुई है आज
आज ही, सरकार ने दिया है अनाज.
.....................   नीरज कुमार 'नीर'
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