पाना सब कुछ और फिर से खोना अच्छा लगता है ।
अब भी जब माँ मिलती है ममता ही बरसाती है
गोद में सर माँ के रख कर सोना अच्छा लगता है।
बच्चों से मिलता हूँ जब भी बच्चा मै बन जाता हूँ
नन्हें बच्चों संग बच्चा होना अच्छा लगता है ।
बेबसी जब बढ़ जाती है हद से ज्यादा जीस्त में
हाथ से मुंह अपने ढक कर रोना अच्छा लगता है ॥
दुनियाँ भर की धनौ दौलत से मुझको क्या लेना
अपने घर का एक छोटा कोना अच्छा लगता है ।।
#नीरज कुमार नीर
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प्यार में पढ़ना। …… सुन्दर अभिव्यक्ति! साभार! नीरज जी!
ReplyDeleteधरती की गोद
बहुत ही भावपूर्ण ... हर शेर प्रेम और दुलार में पगा हुआ लगता है ...
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति ...
दुनियाँ भर की धनौ दौलत से मुझको क्या लेना
ReplyDeleteअपने घर का एक छोटा कोना अच्छा लगता है ।।
बहुत सुंदर और भावपूर्ण.
कितनी खूबसूरती से जिंदगी की अहम चीजों को आपने भावबध्द किया है,
ReplyDeleteआपको पढना, पढ कर गुनना कितना अच्छा लगता है।
सच में प्यार में पड़कर किसी का होना अच्छा लगता है
ReplyDeleteसार्थक प्रस्तुति।
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (25-01-2015) को "मुखर होती एक मूक वेदना" (चर्चा-1869) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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बसन्तपञ्चमी की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आपका हार्दिक आभार मान्यवर .... आपको भी वसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनायें ॥
Deleteबहुत ही सुन्दर सार्थक अभिव्यक्ति, सादर।
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर सार्थक अभिव्यक्ति, सादर।
ReplyDeleteसच में प्यार में पड़कर किसी का होना अच्छा लगता है ! खूबसूरत एहसास भरे शब्द
ReplyDeleteप्रेम चीज ही ऐसी है. सुन्दर कविता.
ReplyDeleteप्रेम के लिए क्या कहा जाए। वह तो स्वयं ही अजर और अमर है।
ReplyDeleteबच्चों से मिलकर। ...... कुछ अलग सा होता है आपके शब्दों में नीर साब ! क्या , नही मालूम
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