दिल पे लगा के चोट,
मुझसे उदासी का सबब
पूछते है.
उन्हें सब है मालूम,
फिर भी
मुझसे बेवजह पूछते
हैं.
दिल को दर्द देना ,
उनकी फितरत है,
हम दर्द से रोयें,
तो रोने की वहज
पूछते हैं.
.......... नीरज
कुमार ‘नीर’
मैं जो दर्द अनुभव करता हूँ , जो दुःख भोगता हूँ, जिस आनंद का रसपान करता हूँ , जिस सुख को महसूस करता हूँ, मेरी कवितायें उसी की अभिव्यंजना मात्र है ।