शिव तुम्हारे नर्त्तन से
कांपा था
संसार.
हे शिव! फिर नर्त्तन करो,
बहुत बढ़ा अत्याचार.
अगर तुम आ नहीं सकते,
मुझमे वो शक्ति भरो.
हे शिव! फिर नर्त्तन करो.
एक सती की मृत्यु ने
तुम्हे विचलित किया था.
कितनी सती जलाई गयी,
कितनी खाक में मिलाई गयी.
आंखे खोलो! ध्यान इस ओर करो.
हे शिव! फिर नर्त्तन करो
हे शिव! फिर नर्त्तन करो
हे शक्ति वल्लभ! तुम्हे जागना होगा,
वसुधा पाप से दबी जाती,
शिवालय लुटे जाते हैं,
आतंक फैलाने वाले,
बा-इज्जत छूटे जाते हैं.
भक्त तुम्हारे मंदिर में
जाने से भी डरता है
तुमको भी संगीनों के
साये में रहना पड़ता है.
जो दुष्ट
है उनके
ह्रदय में भय भरो.
जो साधू हैं उनके
सारे कष्ट हरो.
हे शिव! फिर नर्त्तन करो
हे शिव! फिर नर्त्तन करो
अगर तुम आ नहीं सकते,
मुझमे वो शक्ति भरो.
...........
“ नीरज कुमार ‘नीर’ ”
No comments:
Post a Comment
आपकी टिप्पणी मेरे लिए बहुत मूल्यवान है. आपकी टिप्पणी के लिए आपका बहुत आभार.