खोलो खिड़कियाँ सूरज को आने दो,
अँधेरा अब भी बहुत है ज़माने में.
परदे हटाओ कि ताज़ी हवा आए,
हर्ज क्या एक तरीका आजमाने में.
मुस्कुराओ सब तुम्हे देख मुस्काएं
कोई दाम तो नहीं मुस्कुराने में.
रिश्ता जोड़ना तो है आसान बहुत ,
मुश्किल बहुत है रिश्ता निभाने में.
अपने नुक्स को पहले देख तो नीरज,
लगे हो क्यों सब की कमियां गिनाने में.
……………. नीरज नीर
अँधेरा अब भी बहुत है ज़माने में.
परदे हटाओ कि ताज़ी हवा आए,
हर्ज क्या एक तरीका आजमाने में.
मुस्कुराओ सब तुम्हे देख मुस्काएं
कोई दाम तो नहीं मुस्कुराने में.
रिश्ता जोड़ना तो है आसान बहुत ,
मुश्किल बहुत है रिश्ता निभाने में.
अपने नुक्स को पहले देख तो नीरज,
लगे हो क्यों सब की कमियां गिनाने में.
आसान और स्पष्ट रूप से लिखी गयी कविता , हर किसी को पसंद आएगी |
ReplyDeleteसादर
बहुत शुक्रिया.
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