पापा! मै भी राजकुमारी
होती,
सबकी घर में प्यारी
होती.
थक कर जब तुम घर आते,
मेरी एक मुस्कान,
हर लेती हर थकान.
जिसे भैया बिखरा देता,
तुम्हारी चीजों को,
सहेजती, करीने से सजाती
.
जब तुम्हारा सर दर्द से
फट रहा होता
और भैया व्यस्त होता
क्रिकेट मैच में,
बाम लगाते हुए तुम्हारे
सर पर
मेरा ही हाथ होता.
बुखार में तपती हुई मम्मी
जब रसोई में काम करती और
थाली पटक रहे होते तुम
और भैया
मैं ही होती जो मम्मी का
हाथ बटाती,
उसे नसीब होता एक कतरा
आराम .
मैं भी पढ़ती लिखती, बड़ा
नाम करती,
पिता के नाम में तेरा ही
तो नाम लिखती
पति के घर जाकर, स्वर्ग से करती सुन्दर,
जनकर संतति सृष्टी क्रम बढ़ाती
लेकिन पापा तुने क्या
किया
तुम्हारी नन्ही
राजकुमारी को
नोच रहे हैं कुत्ते, काट
रही है चीटियाँ,
मंडरा रहे है गिद्ध,
क्यों डाल दिया मुझे कूड़े
दान में?
“नीरज कुमार”
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Bhaawpurn rachna ....
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