Saturday, 8 September 2012

शहर की आत्मा

कल रात, एक सुने सड़क पर
मेरे शहर की आत्मा,
मुझसे टकरा गई  .
कृश काया,  वक्र पीठ
कैसे हांफ रही  थी.
शशि किरण में मैंने देखा,
मुझको ताक रही  थी.
पकड़ कर मेरा हाथ
कहा,  सुनो मेरी बात.
मैं आत्मा हूँ, तुम्हारे शहर की ,
अपना हाल बताती  हूँ,
क्या बीती है मुझ पर,
तुम्हे सुनाती  हूँ .
मैंने कहा रुको! बताओ,
ऐसे क्यों हांफ  रही  हो,
कौन सा है भय तुम्हे,
क्यों काँप रही  हो ..
कहने लगी , सुनो मेरे प्रिय !
बात कटु है, मगर है सच्ची
नहीं समझोगे, पछताओगे,
समझ जाओ तो अच्छी .
तुम मनुजों ने काट दिया है
मेरे साँस नली को
इसलिए हांफ रही हूँ.
जरा मरण की सेज पर हूँ,
इस भय से कांप रही हूँ.
मैं पहले वृक्षादित थी .
नदियों में था स्वच्छ पानी
खुलकर साँसे लेती थी .
पीती थी  अमृत पानी.
तुमने वृक्षों को काट  दिया,
नदियों को भी पाट  दिया .
अब नदियाँ  नाला बन
ढोती है गंदा पानी,
इसलिए हुआ हूँ बुढी
रही नहीं जवानी.
मृण्मयी आंगन थे
खूब नहाया करता थी
बच्चे लोटते गोद में मेरी
उन्हें लगाकर मिट्टी ,
खुश हो जाया करती थी,
हवाओं में विष घुला है,
जल में घुला जहर है.
शीघ्र ही तुम सब
मुझ सा हाँफोगे,
इसका  भी मुझको डर है.
जो संसाधन तुम्हे दिया  है.
अंधाधुंध करते हो शोषण,
देकर मुझको कष्ट अपार
निज हित का करते हो  पोषण.
वो रुकी, उसकी नजरें
मेरी नजरों को बेध रही थी.
उसके मुख की करुणा,
मेरे ह्रदय को छेद  रही थी.
फिर बोली,
मेरा एक काम करोगे,
सबको मेरा सन्देश कहोगे
“हर व्यक्ति एक वृक्ष लगाओ ,
नदियों को मत गन्दा करो”
अब नहीं अगर रुके तो,
मैं ही रुक जाऊंगी.
मैं अगर नहीं रही  तो
तुम भी कहाँ रहोगे .
मेरे आँखों में अश्रु थे
ह्रदय दर्द से बोझल था,
कुछ ही पलों में,  वो
मेरी नजरों से ओझल था.
उसने जो सन्देश दिया
वही तुम्हे सुनाता हूँ,
ऊसने जो बात कही,
वही तुम्हे बताता हूँ.


....................“नीरज कुमार”


No comments:

Post a Comment

आपकी टिप्पणी मेरे लिए बहुत मूल्यवान है. आपकी टिप्पणी के लिए आपका बहुत आभार.

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...