Sunday, 18 November 2012

पुष्प

एक सुन्दर स्त्री हाथों में पुष्पों का गुच्छ लिए खड़ी थी , उन्ही को देखकर इस कविता का अनायास जन्म हुआ, जिसे आपके सामने प्रस्तुत करता हूँ :

कौन है ज्यादा सुन्दर, मन मेरा भरमाये 
हाथों में पुष्प लिए पुष्प खड़ा मुस्काए ..

सजी बैंगनी वस्त्रों में, धवल मुक्ता का हार लिए.
चमक रही माथे की बिंदिया, अधर मंद मुस्काए

सौम्य, मनोहर, मन्जुल मुख, नैन बड़े कजरारे
पुष्प को जब पुष्प निहारे, पुष्प बड़ा शरमाए ..

नीरज कुमार ‘नीर’

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