Friday, 16 November 2012

दीप

हाथों में पूजा का थाल लिए, 
गोरी बैठी करके श्रृंगार.


जगमग जगमग दीप जले,
छलके आँखों से निश्च्छल प्यार.

स्वच्छ नीर सी अविरल,
बहती ज्यूँ सरिता की धार.

अधरों पे लाली, भाल पे टीका,
मुख पे लिए काँति अपार.

मधुर मिष्टान्न सी सुख देती,
सौंदर्य हुआ स्वयम साकार .

नीरज कुमार ‘”नीर”

1 comment:

आपकी टिप्पणी मेरे लिए बहुत मूल्यवान है. आपकी टिप्पणी के लिए आपका बहुत आभार.

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...