उसकी गली में मेरे कदमो के निशान बाकी
हैं,
मेरे दिल पे अभी जख्मों के निशान बाकी है.
मेरे मन की बेचैनी, इस बात की निशानी है,
मेरे जिस्म में अब भी जज़्बात बाकी है.
सहेज कर रखते हो मिटा क्यों नहीं देते ,
क्या दिल में अब भी उनका प्यार बाकी है .
दर्द भरी रात है, न जाने कब सहर
होगी,
सूरज सर पे है, फिर भी मेरी रात बाकी है.
दुश्मनों से निबट लिए कब के आराम से,
परेशां हूँ, अब अपनों से निबटना बाकी है.
एहसासो को जब्त किये बैठे रहे कब से
मेरे आँखों में बादल है , बरसात बाकी है.
कटे हुए पेड़ पर
परिंदे जमा है अभी तक,
पेड़ फिर से खड़ा होगा,
शायद यकीं बाकी है.
अब भी देर नहीं हुई,
मिलने आ जाओ,
मेरी कब्र की मिट्टी
में अभी नमी बाकी है.
……………… नीरज कुमार ‘नीर’
bahut hi sundar-dil khush hua.
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