Tuesday, 18 December 2012

सामने है पर मुँह छुपा के बैठा है

मेरा सनम  मुझसे रूठा है इस तरह,
सामने है पर मुँह छुपा के बैठा है.

बुझते हुए चरागों से क्या गिला करें,
आफ़ताब भी  मुँह फिरा के बैठा है.

हम जिनकी तस्वीर दिल में सजाये थे,
गैर को सीने से लगा के  बैठा है.

किस पर करें यकीं, किसका कहा माने,
 हर शख्स चेहरा छुपा  के बैठा है.

उसे है शिकायत अंधेरों से नीरज
जो  घर में चिराग बुझा के बैठा है.

          ..........नीरज कुमार नीर




2 comments:

आपकी टिप्पणी मेरे लिए बहुत मूल्यवान है. आपकी टिप्पणी के लिए आपका बहुत आभार.

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...