मेरा सनम मुझसे रूठा है इस तरह,
सामने है पर मुँह छुपा के बैठा है.
बुझते हुए चरागों से क्या गिला करें,
आफ़ताब भी मुँह फिरा के बैठा है.
हम जिनकी तस्वीर दिल में सजाये थे,
गैर को सीने से लगा के बैठा है.
किस पर करें यकीं, किसका कहा माने,
हर शख्स चेहरा छुपा के बैठा है.
उसे है शिकायत अंधेरों से नीरज
जो घर में चिराग बुझा के बैठा है.
सामने है पर मुँह छुपा के बैठा है.
बुझते हुए चरागों से क्या गिला करें,
आफ़ताब भी मुँह फिरा के बैठा है.
हम जिनकी तस्वीर दिल में सजाये थे,
गैर को सीने से लगा के बैठा है.
किस पर करें यकीं, किसका कहा माने,
हर शख्स चेहरा छुपा के बैठा है.
उसे है शिकायत अंधेरों से नीरज
जो घर में चिराग बुझा के बैठा है.
..........नीरज कुमार नीर
very nice brother...
ReplyDeleteThanks for coming to my blog and liking my poem. Please keep visiting.
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