पटरियों पे बिखरा है
लहू ,
चारो ओर गाढ़ा लाल
लहू .
क्या वह ऊबा होगा
जीवन से
भागा होगा कठिनाइयों
से.
या सजा दे रहा होगा,
किसी अपने को,
जिससे,
उसे रही होगी
उम्मीद,
अपनत्व और प्यार की,
उम्मीद, आशा, जीवन
का स्नेह,
सब बिखरा है,
लहू की तरह पटरियों
पर.
रेल की पटरियां, जो,
जाती है यहाँ से
उसके गांव तक.
जहाँ करती होगी,
उसकी बूढी माँ
इंतज़ार, जो अब
अंतहीन होगी..
सन्देश पहुचायेगी, उसकी माँ तक,
नहीं था यकीं शायद ,
उसने रख छोड़े हैं,
कागज के टुकड़े पर,
नाम, पता और कुछ फोन
नम्बर.
................नीरज कुमार 'नीर'
pd ke bahut bahut achcha lga............................anand murthy
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