Sunday, 23 December 2012

ऊपर ऊपर चलके  तल की थाह नहीं होती,
जब मिला संतोष धन और  चाह नहीं होती.

मंजिल है अगर पानी सीधी राह एक धर,
टेढी राह  चलके मंजिल पार  नहीं होती.

नजरों से कभी भी किसी के गिर न जाईए,
नजरों से गिरकर कोई पनाह नहीं होती,

माँ की बातों का  बुरा नहीं माना करते,
माँ के रंज में भी कभी आह नहीं होती.

              ............नीरज कुमार ‘नीर’

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