Monday, 24 December 2012

नंदिनी

वृताकार पथ पर,
शैतानी मन लिए,
लाल लाल आंखे
लपलपाती जीभ
निगलने को आतुर,
फिरता है विषैला नाग .
फुफकारता, बेखौफ रौंदने को तत्पर,
सड़क पर, बसों में
मेट्रो में , ट्रेनो में
सभी जगह, मानवों का खाल पहने.
बेबस समाज , शासनहीन व्यवस्था को
कुचलता, रौंदता
मर्यादा को तार तार करता
अपने बंधन में कसकर,
डसता है हमारी प्यारी,
सुकुमारी नंदिनी को .
बेखौफ अट्ठाहस करता,
थूकता सभ्य समाज के मुँह पर.
मेमने सी कापती नंदिनी
बनती है दामिनी
अपने छोटे छोटे सींगो को देती है घुसेड़.
अब नाग नहीं बचेगा,
अंत आसन्न है, यम की देहरी पर
देता निमंत्रण है .
******
मेरा अनुरोध सुनो
कुछ ऐसा कर दिखाओ
मौत से बढ़कर अगर कोई
सजा हो तो वही सुनाओ.
उन्हें मारो उनकी
आंतों को काट कर
शरीर के हिस्सों को
कुत्तों में बाटकर.
आज उठो, उठकर
सिंहनाद करो.
बहुत सह लिए सभ्यता के नाम पर.
थोड़े असभ्य बनो,
शेरों से काम करो.
नोचों, झिन्झोडो
मारने से पहले ही अपराधी मर जाये
हड्डियों में सिहरन हो
नाग सभी डर जाये
****
फिर नंदिनी चलेगी
पथ पर इठलाती हुई
बागों में विचरेगी
फूलों के बीच बल खाती हुई.
नागों का फिर भय ना होगा.
सर शर्म से झुका ना होगा..
..........
नीरज कुमार नीर..........

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