Sunday, 30 December 2012

“दामिनी”


आज दामिनी की मौत की खबर पाकर सर शर्म से झुका है, मन बड़ा भारी हो गया है. ईश्वर करे दामिनी की आत्मा को शांति मिले. दामिनी को श्रधांजलि स्वरुप मैंने चंद पंक्तियाँ लिखी है, अगर आपके मन में थोडी भी ग्लानी और जोश भर सके तो अपना प्रयास सार्थक मानूंगा :

नत शीश हुआ आज,
बेहतर इससे , क्षत शीश हो जाता.
कैसा दिन दिखलाया,
शीश शर्म से झुका जाता .
***
आँखों में अश्रु हैं,
दिल में ज्वार है,
हाय! मेरे भारत तेरी
व्यवस्था कितनी बीमार है.
अब सोन चिरैया कैसे
पेड़ों पर गाएगी .
कैसे होकर निर्भीक
मुक्ति राग सुनाएगी.
हर तरफ बैठा सैय्याद ,
अपनी जाल बिछाए.
शासन की शिखंडी को देखकर,
रहा खड़ा मुस्काए.
अब, हमे ही सर साधना होगा
लगाकर निशाना अचूक
पागल कुत्तों का सर काटना होगा.
काटना होगा उनके भी सर
जो बीच में आये.
ताकत के बल पर
अगर कोई डराए.
अब नहीं तने तो
कुत्ते घर में घुस आयेंगे,
भौकेंगे, नोचेंगे हमारी
मुनियाँ को खा जायेंगे.
हिंसा जरूरी है तो
अहिंसा का परित्याग करो
आज़ादी जरूरी अगर है तो
हो निर्भीक लड़ो.
याद है भगवान ने गीता में
क्या ज्ञान दिया था.
जुल्म हद से जब बढ़ा तो
कुरुक्षेत्र में सारथी ने भी
धारण सुदर्शन किया था.
जो बोल नहीं सकता
उसे जुबां का हक नहीं.
जो लड़ नहीं सकता उसे
आज़ादी का हक नहीं.
आजादी प्रत्याभूत नही
कुत्ते छीन कर ले जायेंगे
तुम्हारे बच्चों के हाथों की रोटी
छीन कर खा जायेंगे.
एक होकर दिल में अब
नरसिंह का बल भरो.
अपराधियों को बालों से पकड़ो
जंघा पे लिटाकर चीर डालो
त्वरित सजा नियत करो.
.................नीरज कुमार ‘नीर’

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