बड़ी अजीब मेरी जिन्दगी
की बात है,
मैं हूँ चाँद, फिर भी
अँधेरी रात है.
हर ख्वाहिश पूरी हो
जरूरी तो नहीं,
वो मिले किसी को
मुकद्दर की बात है.
मैं दीया हूँ दिन
का, किसी के काम का नहीं,
मेरा जलना, बुझना,
बेमतलब की बात है.
हरदम ही हारा
जिन्दगी की के खेल में
कैसी बाजी है, मेरी
ही शह, मेरी ही मात है .
परिंदा बैठा, शजर की
सबसे ऊँची शाख पर ,
पत्थर उसी को लगा
किस्मत की बात है.
....................नीरज कुमार ‘नीर’
(शजर:पेड़)
sunder racna
ReplyDeleteशैलेन्द्र रावत जी आपका शुक्रिया.
Deleteआदमी का जब किस्मत खराब होता है तो....वो ऊंट पर भी बैठा होगा तो भी कुत्ता उसे काट ही लेता है.
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