Thursday, 31 January 2013

दीया दिन का


बड़ी अजीब मेरी जिन्दगी की बात है,
मैं हूँ चाँद,  फिर भी अँधेरी रात है.

हर ख्वाहिश पूरी हो जरूरी तो नहीं,
वो मिले किसी को मुकद्दर की बात है.

मैं दीया हूँ दिन का, किसी के काम का नहीं,
मेरा जलना, बुझना, बेमतलब की बात है.

हरदम ही हारा जिन्दगी की के खेल में
कैसी बाजी है, मेरी ही शह, मेरी ही मात है .

परिंदा बैठा, शजर की सबसे ऊँची शाख पर , 
पत्थर उसी को लगा किस्मत की बात है.

....................नीरज कुमार ‘नीर’


(शजर:पेड़)

3 comments:

  1. Replies
    1. शैलेन्द्र रावत जी आपका शुक्रिया.

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  2. आदमी का जब किस्मत खराब होता है तो....वो ऊंट पर भी बैठा होगा तो भी कुत्ता उसे काट ही लेता है.

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आपकी टिप्पणी मेरे लिए बहुत मूल्यवान है. आपकी टिप्पणी के लिए आपका बहुत आभार.

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