गणतंत्र में ये कैसा है अजायब.
तंत्र है , पर गण ही है गायब.
गणतंत्र, गनतंत्र हुआ,
गण से नहीं यहाँ, गन से बनती है सरकार
मिट्टी की माधो जनता के वास्ते जनतंत्र का
अर्थ है मानो बेकार.
जनता के चुने प्रतिनिधि गन के साये में रहते हैं,
जिसने उनको चुनकर भेजा,
उसी से शायद डरते है.
जनता है गूंगी या बहरे हुए सरकार हैं,
जिसके हाथों में होनी थी शक्ति
वही बने लाचार हैं.
जो पंच नहीं बन सकते
देश के प्रधान बन गए .
कैसे कैसे लोग इस देश में
दीवारों पर टंग गए.
संसद में रगड़ा होता है,
सीमा की बात पर मस्तक नत कर लेते हैं
जन अधिकारों की बात करे तो
गन , जन की ओर कर देते हैं.
...............नीरज कुमार ‘नीर’
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