Saturday, 9 February 2013

आईने पे लिखकर


आईने पे लिखकर नाम मिटाया करता हूँ,
जानकर सामने हर बात बताया करता हूँ.

याद है वो प्रेम गीत जो सिखाए थे तुमने ,
जब भी होता हूँ तन्हाई में गाया करता हूँ.

अब तो फकत यादें है, तन्हाई का आलम है,
तुम्हारे ख्यालों से दिल बहलाया करता हूँ.

वो वफ़ा की कसमे जो खाये थे  तुमने,
याद करता हूँ जब भी मुस्कुराया करता हूँ.

ताजे है जख्म सीने के जो तुमने दिये 
दर्द होने पर अब उसे सहलाया करता हूँ.

............ नीरज कुमार ‘नीर’

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