तेरी नाजुक सी आँखों
में जब नमी देखता हूँ,
मैं अपने आप ही में
कोई कमी देखता हूँ.
तेरे लबों पर हँसी
की कोई तरकीब ना हुई,
कभी आसमां तो कभी जमीं देखता हूँ.
थकी हुई आँखों में
भी ख्वाब सुनहरे पलते है
जब भी तुम्हे देखता
हूँ, ख्वाब हसीं देखता हूँ.
परिंदे जमा है उजड़े दरख़्त पर अभी भी,
पेड़ फिर खड़ा होगा
उनमे यकीं देखता हूँ.
........नीरज कुमार
‘नीर’
bahut hi khoobsurat ...parinde jama hai ujde hue darakht pe ped hoga khada unmei yakeen dekhta hu bahut hi positive attitude neeraj har sher par meri wah!!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर...
ReplyDeleteपरिंदे जमा है उजड़े दरख़्त पर अभी भी,
पेड़ फिर खड़ा होगा उनमे यकीं देखता हूँ.
बेहतरीन शेर..
अनु
पारुल बहुत शुक्रिया, मेरी गज़ल पढ़ने के लिए. तुम्हारी बातें नया लिखने की प्रेरणा देती है. शुक्रिया.
ReplyDeleteअनु जी, आपका बहुत आभार, आपकी बातें लिखने का हौसला देती है ब्लॉग पर आते रहिएगा.
ReplyDeleteNeeraj ji.....undoubtedly you write so well and It's a learning experience too for me.Keep up the good work!!!Nivedita
ReplyDeleteNivedita ji bahut abhar.
DeleteVery nice
ReplyDeletehttp://sarikkhan.blogspot.in/
Bahut shukriya.
Delete