कुछ लिखा है, कुछ
लिखना बाकी है,
मेरे इमान का अभी
बिकना बाकी है.
फूल तो खिल के मुरझा
चुके
अब कांटो का खिलना
बाकी है.
कहते हैं आज़ादी परिवर्तन
लाती है,
अभी मुल्क में
परिवर्तन आना बाकी है.
लिए तो जो कर्ज
पिछले अषाढ़ में,
इस बार भी अकाल है,
चुकाना बाकी है.
हरिया के बच्चे शहर चले गए,
अभी हरिया का जाना
बाकी है,
उसके बाप की भूख से
मौत हो गयी
अभी उसकी लाश का
जलाना बाकी है.
#neeraj_kumar_neer
#neeraj_kumar_neer
....................
नीरज ‘नीर’
सुन्दर लिखा है..
ReplyDeleteprabhavshali aur atyant marmik rachna.................... sahi kaha aapne abhi to bahut kuchh baki h
ReplyDeleteमार्मिक रचना नीरज ...भूख से मौत इस बार भी सूखा और लाश का अब तक न जलना बहुत भावमयी प्रस्तुति ..
ReplyDeleteमेरी नई कविता Os ki boond: झांकते लोग...
बहुत खूब ... तीसरा शेर तो कमाल है ... आज़ादी आ चुकी है परिवर्तन आना बाकी है ...
ReplyDeleteलाजवाब गज़ल ...
बहुत ही उम्दा और दिल को छू जाने वाली रचना है
ReplyDeleteहर शेर एक पर एक हैं. बिलकुल यथार्थ बयान करती.
ReplyDeleteArthpoorn , Prabhavi Panktiyan
ReplyDeleteवाह !!!बहुत उम्दा प्रभावी सुंदर गजल,,,लाजबाब शेर,,,
ReplyDeleteRecent post: होरी नही सुहाय,
फूल तो खिल के मुरझा चुके
ReplyDeleteअब काँटों का खिलना बाकी है
बहुत सुन्दर ....
जिन्हें काँटों से हो प्यार
उनके बेडा हो जाते पार
काँटों को खोने का
खौफ नहीं होता ....
"कहते हैं आज़ादी परिवर्तन लाती है
ReplyDeleteअभी मुल्क में परिवर्तन आना बाकी है "......बहुत बढिया कटाक्ष है मौजूदा परिस्थितियों पर
सुन्दर प्रस्तुति...
ReplyDeleteबहुत उम्दा ,दिल तक पहुँचती ग़ज़ल ....
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ReplyDeleteबेबाकी से कर रहे, बाकी काम तमाम |
चालाकी से नहीं हो, करते सब कुछ राम ||
करुण-
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