मैं चलता रहा, संग राह
भी चलती रही.
यूँ मंजिल ना मिली
तमाम उम्र भर.
तीरगी और रौशनी में यूँ
तो जंग मुसलसल है.
जलाता रहा चराग मैं
तमाम उम्र भर .
नेकी की जहां
भी, सिला ही मिला ,
होता रहा यूँ ही मैं
बदनाम उम्र भर.
तस्वीरे जिंदगी कभी
रंगीन ना हुई,
भरता रहा रंग इनमे
नाकाम उम्र भर.
मैं खोया रहा
गुमनामियों में अकेले ही.
वो सुर्ख़ियों में
रहे पढ़कर मेरा कलाम उम्र भर.
...................
नीरज कुमार ‘नीर’
तीरगी : अँधेरा
मुसलसल: लगातार
तीरगी : अँधेरा
मुसलसल: लगातार
मकता बेजोड़ है. आजकल सही अर्थ में मौलिक कृतियाँ कम ही देखने को मिलती हैं.
ReplyDeletewaaaaaaaaaaaaah
ReplyDeleteवाह !!! क्या बात है,बहुत सुंदर ,,,
ReplyDeleteRECENT POST: गर्मी की छुट्टी जब आये,
बहुत खूब... शुभकामनायें
ReplyDeleteअंधेरे ओर रौशनी की जंग तो हमेशा चलती रहती है ...
ReplyDeleteबाखूबी लिखा है गज़ल में ...
last two lines presenting true picture of present age.
ReplyDeleteउम्दा..
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