Monday 23 September 2013

तुम बहो नीर बनकर




तुम बहो प्रिय नीर बनकर,
मेरे जीवन की सरिता में.
भाव उद्वेग प्रस्फुटित हो,
प्रबल बहाव हो कविता में.

कंटक पथ पर पुष्प बनो,
दृष्टि अनुरागी नैनो की .
स्वप्न सुहाने चिर निरंतर,
दृग उन्मीलित रैनो की.

प्रेम तत्व से जग बना, तुम
प्रेम की जागती परिभाषा.
प्रेम भरा हो , मेरे उर में
दीप्त  दीप अविरल आशा.

सोमधरी अधर तुम्हारे
तुम नगर वधु सी कामिनी.
प्रिय तुम्हारे पलकों पर ही
है सोती जगती  यामिनी.

सब तुम्हारे चाहने वाले
नयन बिछाए राहों में.
कपोलों पर कुंतल बिखराए
बसती हो कितनी आहों में .
 .... नीरज कुमार नीर
#neeraj_kumar_neer

चित्र गूगल से साभार .. 

Tuesday 17 September 2013

कौन रोता है , यहाँ?




अर्द्ध रजनी है , तमस गहन है,
आलस्य घुला है, नींद सघन है.
प्रजा बेखबर,  सत्ता मदहोश है,
विस्मृति का आलम, हर कोई बेहोश है.
ऐसे में कौन रोता है , यहाँ?

रंगशाला रौशन है, संगीत है, नृत्य है,
फैला चहुँओर ये कैसा अपकृत्य है.
जो चाकर है, वही स्वामी है
जो स्वामी है, वही भृत्य है .
ऐसे में कौन रोता है , यहाँ?

बिसात बिछी सियासी चौसर की
शकुनी के हाथों फिर पासा है .
अंधे, दुर्बल के हाथों सत्ता है
शत्रु ने चंहुओर से फासा है .


पांचाली का रूदन अरण्य है,
(दु) शासन का कृत्य जघन्य है .
शांत पड़े मुरली के स्वर
स्व धर्म का अभिमान शून्य है.
ऐसे में कौन रोता है , यहाँ?

कल की किसी को परवाह नहीं है,
स्वदेश हित की चाह नहीं है
सबकी राहें हैं जुदा जुदा
देश की एक कोई राह नहीं .
ऐसे में कौन रोता है , यहाँ?

#neeraj_kumar_neer 
.............. नीरज कुमार 'नीर'

चित्र गूगल से साभार 

Sunday 15 September 2013

आदमी



अपनों को खोके बहुत रोता है आदमी
यादों के जब बोझ को  ढोता है आदमी

रिश्ते जो हो न सके कामयाब सफ़र में
करके याद  उन्हें दामन भिगोता है आदमी

पहले काटता है पेड़,  जलाता है जंगलात ,
एक टुकड़ा छांव को फिर रोता है आदमी .

बोया पेड़ बबूल का तो आम कहाँ से होय,
पाता वही वही है जो बोता है आदमी ..

              ......... नीरज कुमार ‘नीर’
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