अपनों को खोके बहुत रोता
है आदमी
यादों के जब बोझ को ढोता है आदमी
रिश्ते जो हो न सके कामयाब
सफ़र में
करके याद उन्हें दामन भिगोता है
आदमी
पहले काटता है पेड़, जलाता है जंगलात ,
एक टुकड़ा छांव को फिर रोता
है आदमी .
बोया पेड़ बबूल का तो आम
कहाँ से होय,
पाता वही वही है जो बोता
है आदमी ..
......... नीरज कुमार
‘नीर’
आपकी इस प्रस्तुति की चर्चा कल सोमवार [16.09.2013]
ReplyDeleteचर्चामंच 1370 पर
कृपया पधार कर अनुग्रहित करें
सादर
सरिता भाटिया
बहुत अच्छी रचना.....
ReplyDeleteसच ही है जो हम बोते हैं वही तो काटते हैं ...
सुंदर रचचना...
ReplyDeleteसादर।
बहुत खूब..सुन्दर रचना।
ReplyDeleteबहुत अच्छी रचना.....
ReplyDeleteबहुत अच्छी रचना.....
ReplyDeleteपहले काटता है पेड़, जलाता है जंगलात ,
ReplyDeleteएक टुकड़ा छांव को फिर रोता है आदमी
बहुत सुन्दर शेर कहा है आपने.
बहुत अच्छे!
ReplyDeleteजंगल की डेमोक्रेसी
सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteहिंदी ब्लॉग के लिए एक ऐड साईट
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना !
latest post कानून और दंड
atest post गुरु वन्दना (रुबाइयाँ)
पहले काटता है पेड़, जलाता है जंगलात ,
ReplyDeleteएक टुकड़ा छांव को फिर रोता है आदमी ...
बहुत खूब .. अपने कर्मों के फल को ही भोगता है आदमी ... सुन्दर गज़ल ... नायाब शेर लिए ...
बहुत सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeletebahut hi badhiya.
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