समतल उर्वर भूमि पर
उग आयी स्वतंत्रता
जंगली वृक्ष की भांति
आवृत कर लिया इसे
जहर बेल की लताओं ने
खो गयी इसकी मूल पहचान
अर्थहीन हो गए इसके होने
के मायने .
..
गुलाब की पौध में,
नियमित काट छांट के आभाव
में
निकल आती हैं जंगली शाख.
इनमे फूल नहीं खिलते
उगते हैं सिर्फ कांटे.
लोकतंत्र होता है गुलाब की
तरह ...
… नीरज कुमार ‘नीर’
#neeraj_kumar_neer
#neeraj_kumar_neer
काश सभी लोग स्वतंत्रता के सही अर्थ को समझें ! श्रेष्ठ मनोभावना !
ReplyDeleteकाँटों को छाटना पड़ता है, गुलाब को निखारने के लिये।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर .
ReplyDeleteनई पोस्ट : उत्सवधर्मिता और हमारा समाज
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (26-10-2013) "ख़ुद अपना आकाश रचो तुम" चर्चामंच : चर्चा अंक -1410” पर होगी.
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है.
सादर...!
सुन्दर प्रस्तुति-
ReplyDeleteआभार आदरणीय-
आप की इस खूबसूरत रचना के लिये ब्लौग प्रसारण की ओर से शुभकामनाएं...
ReplyDeleteआप की ये सुंदर रचना आने वाले शनीवार यानी 26/10/2013 को कुछ पंखतियों के साथ ब्लौग प्रसारण पर भी लिंक गयी है... आप का भी इस प्रसारण में स्वागत है...आना मत भूलना...
सूचनार्थ।
गुलाब और स्वतंत्रता बिल्कुल एक तरह बहुत अच्छी रचना ....
ReplyDeleteकहने को है लोकतंत्र
ReplyDeleteऔर हर तरफ है अत्याचार
देश का पैसा स्विस बैंक में
और जनता दाने दाने को लाचार..
मेरी दुनिया.. मेरे जज़्बात..
बहुत उम्दा अभिव्यक्ति ,,,!
ReplyDeleteRECENT POST -: हमने कितना प्यार किया था.
बिलकुल सही कहा है आपने.
ReplyDelete“अजेय-असीम{Unlimited Potential}”
ReplyDeleteबहुत खूब ,सुंदर लेखन ब्रदर |
काश इस लोकतंत्र में काँटों के साथ गुलाब भी तो नज़र आता ...
ReplyDeleteअर्थपूर्ण रचना है ...
बहुत बढ़िया रचना , नीरज भाई
ReplyDeleteनई पोस्ट -: प्रश्न ? उत्तर भाग - ५
बीती पोस्ट --: प्रतिभागी - गीतकार के.के.वर्मा " आज़ाद " ---> A tribute to Damini
लोकतंत्र की सटीक परिभाषा !
ReplyDeleteउर्वर भूमि पर जंगल उग आए है. सुंदर रचना .
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