Friday, 25 October 2013

गुलाब और स्वतंत्रता



समतल उर्वर भूमि पर
उग आयी स्वतंत्रता
जंगली वृक्ष की भांति
आवृत कर लिया इसे
जहर बेल की लताओं ने
खो गयी इसकी मूल पहचान
अर्थहीन हो गए इसके होने के मायने .
..
गुलाब की पौध में,
नियमित काट छांट के आभाव में
निकल आती हैं जंगली शाख.
इनमे फूल नहीं खिलते
उगते हैं सिर्फ कांटे.
लोकतंत्र होता है गुलाब की तरह ...
नीरज कुमार ‘नीर’
#neeraj_kumar_neer 

12 comments:

  1. काश सभी लोग स्वतंत्रता के सही अर्थ को समझें ! श्रेष्ठ मनोभावना !

    ReplyDelete
  2. काँटों को छाटना पड़ता है, गुलाब को निखारने के लिये।

    ReplyDelete
  3. सुन्दर प्रस्तुति-
    आभार आदरणीय-

    ReplyDelete
  4. आप की इस खूबसूरत रचना के लिये ब्लौग प्रसारण की ओर से शुभकामनाएं...
    आप की ये सुंदर रचना आने वाले शनीवार यानी 26/10/2013 को कुछ पंखतियों के साथ ब्लौग प्रसारण पर भी लिंक गयी है... आप का भी इस प्रसारण में स्वागत है...आना मत भूलना...
    सूचनार्थ।

    ReplyDelete
  5. गुलाब और स्वतंत्रता बिल्कुल एक तरह बहुत अच्छी रचना ....

    ReplyDelete
  6. कहने को है लोकतंत्र
    और हर तरफ है अत्याचार
    देश का पैसा स्विस बैंक में
    और जनता दाने दाने को लाचार..


    मेरी दुनिया.. मेरे जज़्बात..

    ReplyDelete
  7. बिलकुल सही कहा है आपने.

    ReplyDelete
  8. “अजेय-असीम{Unlimited Potential}”
    बहुत खूब ,सुंदर लेखन ब्रदर |

    ReplyDelete
  9. काश इस लोकतंत्र में काँटों के साथ गुलाब भी तो नज़र आता ...
    अर्थपूर्ण रचना है ...

    ReplyDelete
  10. लोकतंत्र की सटीक परिभाषा !

    ReplyDelete
  11. उर्वर भूमि पर जंगल उग आए है. सुंदर रचना .

    ReplyDelete

आपकी टिप्पणी मेरे लिए बहुत मूल्यवान है. आपकी टिप्पणी के लिए आपका बहुत आभार.

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...