Tuesday, 29 October 2013

फुलमनी

वागर्थ के अप्रैल 2015 अंक में प्रकाशित 

रांची का रेलवे स्टेशन.
फुलमनी ने देखा है
पहली बार कुछ इतना बड़ा .
मिटटी के घरों और
मिटटी के गिरिजे वाले गाँव में
इतना बड़ा है केवल जंगल.
जंगल जिसकी गोद में पली है फुलमनी
कुलांचे मारते मुक्त, निर्भीक. 
पेड़ों के जंगल से
फुलमनी आ गयी
आदमियों के जंगल में ,
जंगल जो लील जाता है 
जहाँ सभ्य समाज का आदमी
घूरता हैं
हिंस्र नज़रों से
सस्ते पोलिस्टर के वस्त्रों को
बेध देने की नियत से ....
फुलमनी बेच दी गयी है
दलाल के हाथों,
जिसने दिया है झांसा
काम का ,
साथ ही देखा है
उसके गुदाज बदन को
फुलमनी दिल्ली में मालिक के यहाँ
करेगी काम,
मालिक तुष्ट करेगा अपने काम
काम से भरेगा
उसका पेट
वह वापस आएगी जंगलों में
जन्म देगी
बिना बाप के नाम वाले बच्चे को.

(फिर कोई दूसरी फूलमनी देखेगी 
पहली बार रांची का रेलवे स्टेशन..) 
... नीरज कुमार ‘नीर’

10 comments:

  1. बढ़िया प्रस्तुति-
    शुभकामनायें नीरज जी-

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  2. मार्मिक ... कब खत्म होगा फूलमनी जैसे अनेकों का शोषण ...

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  3. ह्रदय को छूती है आपकी यह रचना. फुलमनी सी ना जाने कितने शिकार होती हैं इन 'बड़े लोगों' का.

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  4. ओह !! विडम्बना हैं यह भी एक .....

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  5. बहुत बढ़िया व वास्तविकता में आत्मा को स्पर्श करती रचना , बहुत सुन्दर नीरज भाई
    नया प्रकाशन --: दीप दिल से जलाओ तो कोईबात बन

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