अगर तुम पढ़ पाते
मन की भाषा तो
जान पाते
मेरे अंतर के भाव को
तुम समझ पाते
उस बात को
जो मैं कह न सका
तुम देखते हो काला रंग
पर नहीं देख पाते
उसमे छुपे रंगों के इन्द्रधनुष को
जो काला है, उसमे
समाहित है सभी रंग
कभी परदे हटाकर देखो
दिखेगा सत्य
सत्य चमकीला होता है
चुंधियाता हुआ ..
नीरज कुमार ‘नीर’
#neeraj_kumar_neer
सुंदर !
ReplyDeleteअगर तुम पढ़ पाते
ReplyDeleteमन की भाषा
wah
कल 29/12/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
ReplyDeleteधन्यवाद!
धन्यवाद यशवंत यश जी
Deleteबहुत सुन्दर .
ReplyDeleteनई पोस्ट : रंग और हमारी मानसिकता
अपने भावों को बड़ी ही ख़ूबसूरती से प्रस्तुत किया,सुंदर रचना...!
ReplyDeleteRecent post -: सूनापन कितना खलता है.
आपकी इस ब्लॉग-प्रस्तुति को हिंदी ब्लॉगजगत की सर्वश्रेष्ठ कड़ियाँ (27 दिसंबर, 2013) में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,,सादर …. आभार।।
ReplyDeleteकृपया "ब्लॉग - चिठ्ठा" के फेसबुक पेज को भी लाइक करें :- ब्लॉग - चिठ्ठा
शुक्रिया ब्लॉग चिठ्ठा ..
Deleteएक ही रंग में समाये रंग अक्सर नज़र नहीं आते ... भावपूर्ण अभिव्यक्ति ...
ReplyDeleteनव वर्ष मंगलमय हो ...
वाह .... आपने तो काले को 'सफेद' बना दिया
ReplyDeleteअनोखा मोड़ ... वाह
जो ध्यान देंगे उनके लिए यह रचना प्रिज्म का काम करेगी. अति सुन्दर.
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