Friday, 27 December 2013

काला रंग


अगर तुम पढ़ पाते
मन की भाषा तो
जान पाते
मेरे अंतर के भाव को
तुम समझ पाते
उस बात को
जो मैं कह न सका
तुम देखते हो काला रंग
पर नहीं देख पाते
उसमे छुपे रंगों के इन्द्रधनुष को
जो काला है, उसमे
समाहित है सभी रंग
कभी परदे हटाकर देखो
दिखेगा सत्य
सत्य चमकीला होता है
चुंधियाता हुआ ..

नीरज कुमार ‘नीर’

#neeraj_kumar_neer 

9 comments:

  1. अगर तुम पढ़ पाते
    मन की भाषा
    wah

    ReplyDelete
  2. कल 29/12/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
    धन्यवाद!

    ReplyDelete
    Replies
    1. धन्यवाद यशवंत यश जी

      Delete
  3. अपने भावों को बड़ी ही ख़ूबसूरती से प्रस्तुत किया,सुंदर रचना...!

    Recent post -: सूनापन कितना खलता है.

    ReplyDelete
  4. शुक्रिया ब्लॉग चिठ्ठा ..

    ReplyDelete
  5. एक ही रंग में समाये रंग अक्सर नज़र नहीं आते ... भावपूर्ण अभिव्यक्ति ...
    नव वर्ष मंगलमय हो ...

    ReplyDelete
  6. वाह .... आपने तो काले को 'सफेद' बना दिया
    अनोखा मोड़ ... वाह

    ReplyDelete
  7. जो ध्यान देंगे उनके लिए यह रचना प्रिज्म का काम करेगी. अति सुन्दर.

    ReplyDelete

आपकी टिप्पणी मेरे लिए बहुत मूल्यवान है. आपकी टिप्पणी के लिए आपका बहुत आभार.

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...