बाहर सब उजला उजला
तम कितना पर अन्दर .
तम कितना पर अन्दर .
आया पुनः नव वर्ष,
बदल गया कैलेण्डर.
देह वही, सांस वही,
भोग वही, चाह वही,
तमस में द्वार नहीं,
कफस से राह नहीं.
आ गया जनवरी
कल था दिसंबर ..
भवन ऊँचे छूते आकाश
उस पार मैला प्रकाश ,
प्राचीर ऊँची , गिरे
विचार.
लाचार ठंढे बेबस
उच्छ्वास ..
उच्छ्वास ..
अन्दर अन्दर मथता है
विचारों का बवंडर ..
राजनीति में नीति का
नित्य-नित्य उल्लंघन
भाग्य विधाता बन कर बैठे
विचारों की थाली के बैंगन ..
जो कुछ बाहर दिखता है
है वही नहीं अन्दर ..
नव वर्ष आया ,
बदल गया कैलेण्डर.
#neeraj_kumar_neer
... नीरज कुमार नीर
(बात अगर दिल तक पहुचे तो टिप्पणी के माध्यम से समर्थन अवश्य दें )
बस कैलंडर ही न बदले... बदले परिवेश भी... सार्थक परिवर्तन की ओर!
ReplyDeleteअच्छी रचना!
शुभकामनाएं!
बहुत सही ... यही भाव मेरे मन में भी आते हैं आखिर क्या बदलता है। .. कुछ भी तो नहीं
ReplyDeleteबढ़िया है भाई जी-
ReplyDeleteआभार
bahut sahi kaha aapne ...sundar rachna
ReplyDeleteकेलेंडर ऐसे ही बदलते रहेंगे ... जो हों अहै वो होता रहेगा ... बस २०१३ यादों में चला जायगा ... वन वर्ष की मंगल कामनाएं ...
ReplyDeleteबहुत उम्दा सुंदर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteनव वर्ष की हार्दिक बधाई और शुभकामनाए...!
RECENT POST -: नये साल का पहला दिन.
सुंदर !
ReplyDeleteनववर्ष शुभ हो मंगलमय हो !
उम्दा..... नववर्ष की मंगल कामनाएं
ReplyDeleteअन्दर अन्दर मथता है
ReplyDeleteविचारों का बवंडर ..ye kabhi nahi badalta hai ......
शुक्रिया ब्लॉग चिठ्ठा ..
ReplyDeleteबेहतरीन अभिवयक्ति.....
ReplyDeleteसच में जीवन वही रह जाता है. नए साल की शुभकामनायें.
ReplyDelete