विषाद के क्षण को भी जी भरकर जीता हूँ,
विष अगर मिल जाये हंसकर मै पीता हूँ.
संस्कार की पूंजी, संस्कृति अक्षय धन है
शिव का वरदान है, कृष्ण का उपासक हूँ.
सांसो पर अधिकार है, मन का शासक हूँ.
दुःख हो या उल्लास, बराबर से जीता हूँ .
विषाद के क्षण को भी जी भरकर जीता हूँ,
विष अगर मिल जाये हंसकर मै पीता हूँ.
चाह नहीं विजय की, भय नहीं कुछ खोने का
शिराओं में प्रस्फुटित काल निनाद होता है,
सबल भुजाओं में, दीर्घ इतिहास सोता है.
उन्मुग्ध रहा विश्व, ज्ञान का अधिष्ठाता हूँ.
विषाद के क्षण को भी जी भरकर जीता हूँ,
विष अगर मिल जाये हंसकर मै पीता हूँ.
सभ्यता सिखाता रहा सदा आदि काल से,
डरा नहीं रक्तरंजित, देख दन्त कराल के.
विश्व विजय की, नहीं की कभी भी अभिलाषा,
नत हो कोई की नहीं, कभी ऐसी आशा .
निर्विकल्प रहा सदा, रागों से रीता हूँ,
विषाद के क्षण को भी जी भरकर जीता हूँ,
विष अगर मिल जाये हंसकर मै पीता हूँ.
पराजित हुआ रहा, पराधीन भी सदियों
ठगा गया कई बार, छल के हाथों हारा.
उठा हर बार, स्वयं ही स्वयं को संवारा .
मैं अपने भाग्य का स्वयं ही निर्माता हूँ.
विषाद के क्षण को भी जी भरकर जीता हूँ,
विष अगर मिल जाये हंसकर मै पीता हूँ.
.... नीरज कुमार नीर ...
#neeraj_kumar_neer
#neeraj_kumar_neer
haan sach me main bhart hi hun .......vicharpurn rachna
ReplyDeleteउत्कृष्ट रचना ...बधाई एवं शुभकामनायें .
ReplyDeleteबहुत कुछ है ये देश .. बहुत कुछ था ये देश ... पर आज विषाद ही छाया हुआ है ... जिससे बाहर आना है ...
ReplyDeleteआपकी बेहतरीन रचना। मैं भारत हूँ
ReplyDeleteनई कड़ियाँ : गौरैया के नाम
फरवरी माह के महत्वपूर्ण दिवस
ऐसा ही है हमारा प्यारा भारत महान ,आशा नहीं छोड़ेंगे ......बहुत बढ़िया ....
ReplyDeleteबहुत सुंदर.....
ReplyDeleteसुंदर मनभावन रचना
ReplyDeleteबसंत पंचमी की अनंत हार्दिक शुभकानाएं ---
उत्कृष्ट प्रस्तुति
बधाई -----
आग्रह है--
वाह !! बसंत--------
विषाद के क्षण को भी जी भरकर जीता हूँ,
ReplyDeleteविष अगर मिल जाये हंसकर मै पीता हूँ.
विषाद के क्षण को भी जी भरकर जीता हूँ,
विष अगर मिल जाये हंसकर मै पीता हूँ.
मैं विषाद के क्षण को भी जी भरकर जीता हूँ,
विष अगर मिल जाये हंसकर मै पीता हूँ.भारत हूँ :
सशक्त रूपक रतत्व लिए है रचना।
आपकी इस प्रस्तुति को आज की बसन्त पंचमी, विश्व कैंसर दिवस, फेसबुक के 10 साल और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
ReplyDeleteसारे जहाँ से अच्छा हिंदुस्तान हमारा.... बहुत खूबसूरत कविता ....!!
ReplyDeleteshandar
ReplyDeleteलाजबाब , बहुत ही सुंदर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteRECENT POST-: बसंत ने अभी रूप संवारा नहीं है
काल की चाल पर विश्वास है,
ReplyDeleteबेटों पर मुझे अडिग आस है।
आत्मविश्वास भरती हुई प्रेरक पंक्तियाँ. सुन्दर सृजन का नमूना है आपकी यह कविता. बहुत अच्छा लगा पढ़कर.
ReplyDeleteभारत के जीवन दर्शन एवं गौरव को स्थापित करती सशक्त प्रस्तुति !
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया
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