मेरी आँखों के सामने
रूका हुआ है
धुएं का एक गुबार
जिस पर उगी है एक इबारत ,
जिसकी जड़ें
गहरी धंसी हैं
जमीन के अन्दर.
इसमें लिखा है
मेरे देश का भविष्य,
प्रतिफल , इतिहास से कुछ नहीं सीखने का .
उसमे उभर आयें हैं ,
कुछ चित्र,
जिसमे कंप्यूटर के की बोर्ड
चलाने वाले , मोटे चश्मे वाले
युवाओं को
खा जाता है,
एक पोसा हुआ भेड़िया,
लोकतंत्र को कर लेता है ,
अपनी मुठ्ठी में कैद
और फिर फूंक मारकर
उड़ा देता है उसे
राख की तरह
मानो यह कभी था ही नहीं.
बन जाता हैं स्वयं शहंशाह
टेलीविजन पर बहस करने वाले
बड़े-बड़े बुद्धिजीवि
भिड़ा रहे हैं जुगत ,
अपनी सुन्दर बीवियों और
बेटियों को छुपाने की
धुआं धीरे धीरे नीचे उतर कर
आ जाता है जमीन पर,
पत्थर के पटल पर
मोटे मोटे अक्षरों में दर्ज
हो जाता है इतिहास.
मैं अपनी आँखों के सामने
इतिहास बदलते देख रहा हूँ ..
(बात अगर दिल तक पहुचे एवं विचार से सहमत हों तो अपने कमेन्ट अवश्य दें )
(बात अगर दिल तक पहुचे एवं विचार से सहमत हों तो अपने कमेन्ट अवश्य दें )
नीरज कुमार नीर
#NEERAJ_KUMAR_NEER
#NEERAJ_KUMAR_NEER
चित्र गूगल से साभार
बहुत सुंदर रचना.
ReplyDeleteनई पोस्ट : सिनेमा,सांप और भ्रांतियां
बहुत सुंदर प्रस्तुति.
ReplyDeleteइस पोस्ट की चर्चा, शनिवार, दिनांक :- 29/03/2014 को "कोई तो" :चर्चा मंच :चर्चा अंक:1566 पर.
आभार ..
Deleteजिन्दगी क्या है, एक धुएँ का गुबार है !
ReplyDeleteप्रेम यदि इस में न् होतो, समझो कि यह बेकार है !!
बहुत अच्छी प्रस्तुति !
ReplyDeleteबड़े-बड़े बुद्धिजीवि
ReplyDeleteभिड़ा रहे हैं जुगत ,
अपनी सुन्दर बीवियों और
बेटियों को छुपाने की sahi bat apni ko chhipate hai par dusron ki kise khabar ?sundar bhaw .....
बहुत खूब / बहुत उम्दा रचना
ReplyDeleteउत्कृष्ट लेखनी
एक नज़र :- हालात-ए-बयाँ: ''कोई न सुनता उनको है, 'अभी' जो बे-सहारे हैं''
बहुत खूब !
ReplyDeleteबहुत खूब ... आपका बिलकुल नया कलेवर
ReplyDeleteसुंदर....
ReplyDeleteधीरे धीरे सब कुछ धुंए कि गुबार में ही तो बस्ता जा रहा है ... जो उड़ जाएगा एक ही पल में फूंक मार के ... गहरी बात लिखी है ...
ReplyDeleteआपको ये बताते हुए हार्दिक प्रसन्नता हो रही है कि आपका ब्लॉग ब्लॉग - चिठ्ठा - "सर्वश्रेष्ठ हिन्दी ब्लॉग्स और चिट्ठे" ( एलेक्सा रैंक के अनुसार / 31 मार्च, 2014 तक ) में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएँ,,, सादर .... आभार।।
ReplyDeleteआपका हार्दिक आभार ..
Deleteबड़े-बड़े बुद्धिजीवि
ReplyDeleteभिड़ा रहे हैं जुगत ,
अपनी सुन्दर बीवियों और
बेटियों को छुपाने की
बधाई आपको !
Badhai ho aapko--soye hue khayalon ko ukerane ke liye. Bahut sundar hai. Mujhe sirf ek baat kahni hai---aajkal yuvon ke (vriddhon ke bhi) chashme mote nahin hote..nai technology hai..agar sirf chashmewale kahen to kaisa rahega
ReplyDeleteआदरणीय गीता जी हार्दिक धन्यवाद आपका .... मोटा चश्मा तो एक बिम्ब है , सिर्फ चश्मा रखने से भी काम चल जायेगा . लेकिन मोटा चश्मा degree बढ़ा देता है, यह इस बात का द्योतक है जो लोग सिर्फ पढने लिखने को ही अपना भविष्य देखतें हैं एवं अन्य बातें धर्म , समाज आदि उन्हें बोझ एवं गलत लगता है .. उनकी गति आने वाले समय में अच्छी नहीं रहने वाली .. लोकतंत्र हमेशा ऐसा ही नहीं रहने वाला .. :) सादर आभार .. नीरज कुमार नीर
Deleteshandar post / :)
ReplyDeleteअदभूत भाई ! बहुत ही खूब!!
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