जब सूरज चला जाता है
अस्ताचल की ओट में
और चाँद नहीं निकलता है.
दिखती है उफक पर
पश्चिम दिशा की ओर
लाल लकीरें.
पूरब में काली आँखों वाला राक्षस
खोलता है मुंह
लेता है जोर की साँसे
चलती है तेज हवाएं.
लाल लकीरें डूब जाती हैं,
फिर सब हो जाता है प्रशांत.
मैं पाता हूँ स्वयं को
एक अंध विवर में
हो जाता हूँ विलीन
तम से एकाकार .
खो जाता है मेरा वजूद.
न जाने कब चाँद निकलेगा.
(C) .. नीरज कुमार नीर .
Neeraj Kumar Neer
Neeraj Kumar Neer
चित्र गूगल से साभार
अँधेरे को भगाने ही तो चाँद आता है... बहुत अच्छी रचना, बधाई.
ReplyDeleteसुंदर कविता
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत बढ़िया
ReplyDeleteवाह ... सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति। मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है।
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया
ReplyDeleteसादर
चाँद का इंतज़ार जब इतनी शिद्दत से होगा ...तो कहाँ जायेगा वह ....उसे आना ही होगा ....
ReplyDeleteसुन्दर लिखा है आपने.
ReplyDeleteहोंसला रखना जरूरी है ... चाँद निकल ही आता है कुछ पल में ...
ReplyDeleteनिराशा के अँधेरे में डूबते हुए भी चाँद रुपी आशा ..बहुत पॉजिटिव रचना है
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