लीक पकड़
मैं चला नहीं
मुझे पथ बनाना आता है
अँधियारों से
डरा नहीं
मुझे दीप जलाना आता है ॥
हुआ जब दिग्भ्रांत
लगा ध्यान देखा
ध्रुव ही की ओर
रवि का क्या
वह तो
सुख भर साथ निभाता है ॥
अग्नि वीणा के तारों को
छूकर के
झंकार दिया
नफरत पथ के पथिक को
निश्छल होकर
प्यार दिया
पत्थर पर
थाप लगाकर
मृदंग बजाना आता है ।
लीक पकड़ मैं
चला नहीं
मुझे पथ बनाना आता है
सौंदर्य नहीं कुसुमाकर का
शूल हूँ
सुमन का रखवाला
अपनी वज्र हथेलियों पर
नव कुसुम
खिलाना आता है ।
भाव में हरिवास
कण कण घट घट
तत्व एहसास
पाषाणों मे भरकर प्राण
उन्हें
भगवान बनाना आता है ।
लीक पकड़ मैं
चला नहीं
मुझे
पथ बनाना आता है ।
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#नीरज कुमार नीर
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