जालिम कैसे निबाहता है रस्म ए इश्क़
पहले याद करता है फिर भुला देता है
आता है कभी करीब फिर दूर जाता है
देता है गम ए दिल और रूला देता है
रहती है जब उम्मीद तो आता ही नहीं
आता है रातों को और जगा देता है
रोशनी फैले भी तो कैसे हयात में
जलाता है इक दीया फिर बुझा देता है
उनके अंदाजे बरहमी के क्या कहिए
जाने को कहता है फिर सदा देता है॥
#नीरज कुमार नीर ......
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नीरज जी बेहद ख़ूब बयाँ है इश्क का .....सुंदर शायरी
ReplyDeleteसुन्दर ग़ज़ल ! आदरणीय नीरज जी!
ReplyDeleteधरती की गोद
बहुत खूब .. आखरी दो लाइनें तो कमाल कर गयीं ...
ReplyDeleteएकदम खूबसूरत पंक्तियाँ नीरज जी
ReplyDeleteये इश्क ही है. सुंदर रचना !
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