चूनर धानी ओढ़कर, आया फाल्गुन मास
बीता शीत शरद शिशिर, मौसम में मधुमास ॥
पी ली जल की गागरी, मिटी न तन की प्यास
इहै फाल्गुन आओगे, लगी हुई है आस॥
मन है मेरा बावरा, देह सूखती जाय
फाल्गुन में विदेश पिया, मुँह से निकले हाय
दिवस लघु से दीर्घ हुए, क्षुद्र हो गयी रात
मैं बिरहन बिरहन रही, बिरह न माने मात ॥
फूल फूले और झरे, गिरे धरा पर पात
तुझ तक तो पहुँची नहीं, प्रीतम दिल की बात॥
आओगे जब साजना, लेकर आना रंग
बाँहों में भरकर मुझे, पिया लगाना अंग॥
मन में अगर उमंग हो , सब कुछ लगता खास
फाल्गुन आता मिट जाता दुखों का एहसास
........... #नीरज कुमार नीर
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