परिंदे पत्रिक के दिसंबर - जनवरी ' 2015 अंक में प्रकाशित मेरी दो कवितायें " उड़ो तुम " एवं "सपने और रोटियाँ "
उडो तुम.............
उडो तुम
उडो व्योम के वितान में.
पसारो पंख निर्भय .
अश्रु धार से
नहीं हटेगी चट्टान
जो है जीवन की राह में ,
मार्ग अवरुद्ध किये,
खुशियों की .
गगन की ऊंचाई से
सब कुछ छोटा लगता है.
और तुम बड़े हो जाते हो.
गुनगुनाओ कि
गुनगुनाने से जन्मता है राग
मिटता है राग .
सप्तक के गहन सागर में
जब सब शून्य हो जाता है
अस्तित्व का आधार भी और
होता है, सिर्फ आनंद.
बिस्तर की नमकीन चादर को
धुप दिखा कर
फिर टांग दो परदे की तरह
अपने और दुखों के बीच ..
...... नीरज कुमार ‘नीर’
------------------------------------
------------------------------------
….. सपने और रोटियां
सपने अक्सर झूठे होते हैं.
मैने झूठ बेचकर सच ख़रीदा है.
सच अपने बूढ़े माँ बाप के लिए,
सच अपने बीवी बच्चों के लिए,
मैने सपने बेचकर खरीदी हैं रोटियां.
सपने सहेजे नहीं जा सकते,
मैं सहेज कर रखता हूँ रोटियाँ,
पेट भरा हो तो नींद गहरी आती है.
गहरी नींद में सपने नहीं आते
मैं नींद में गहरे सोता हूँ.
क्योंकि मैने सपने बेचकर खरीदी हैं रोटियां.
............. नीरज कुमार ‘नीर’
बहुत ही सुन्दर सार्थक प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत -बहुत बधाई
ReplyDeleteदोनों रचनाये बहुत ही बढियां है..
शुभकामनायें...
ओज़स्वी रचना ... बहुत बधाई इनके प्रकाशन की ...
ReplyDeleteइतना बढ़िया लेख पोस्ट करने के लिए धन्यवाद! अच्छा काम करते रहें!। इस अद्भुत लेख के लिए धन्यवाद ~Ration Card Suchi
ReplyDelete