मित्रों आजकल देखने में आता है कि भारत के गाँव अपनी जिन खूबियों के लिए जाने जाते थे, वहाँ वे खूबियाँ धीरे धीरे गुम होती जा रही है। वहाँ का गंवईपन , आपसी समरसता, प्रेम , भाईचारा, मेल मिलाप, गीत , संगीत, निश्छलता आदि न जाने कहाँ गायब होते चले गए। गांवों में अब एक अजीब सी निष्ठुरता तारी होती जा रही है, भौतिकतावादी विचारों ने शहर से अपने पाँव गांवों तक पसार लिए हैं । प्रस्तुत है इसी परिदृश्य को अभिव्यंजित करती यह कविता "कहाँ गए वो लोग" । पढ़िये और बताइये क्या आपके गाँव में भी ऐसा हो रह है .....
औरों के गम में रोने वाले
संग दालान में सोने वाले।
साँझ ढले मानस का पाठ
सुनने और सुनाने वाले ।
होती थी जब बेटी विदा
पड़ोस की चाची रोती थी
बेटी हो किसी के घर की
अपनी बेटी होती थी
फूल खिले औरों के आँगन
मिलकर सोहर गाने वाले ॥
पाँव में भले दरारें थी
पर हँसी निश्छल निर्दोष
हर दिन उत्सव उत्सव था
एकादशी हो या प्रदोष
कच्चे मन के गाछ पर
खुशियों के फूल खिलाने वाले ।
पूजा हो या कार्य प्रयोजन
पूरा गाँव उमड़ता था
किसी के घर विपत्ति हो
सामूहिक रूप से लड़ता था
किसी के भी संबंधी को
अपना कुटुंब बताने वाले ।
गाँव की पंचायतों में
स्वयं परमेश्वर बसता था।
सहकारी परंपरा से
सारा कार्य निबटता था।
किसी के घर के चूने पर
मिलकर छप्पर छाने वाले ।
कहाँ गए वो लोग।
कहाँ गए वो लोग।
.............. नीरज कुमार नीर
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बिल्कुल सही लिखा है आप नें नीरज जी।अति सुन्दर कविता।
ReplyDeleteबिलकुल सही कहा आपने गांव का वो खूबसूरत वातवरण अब खोता जा रहा है..
ReplyDeleteसार्थक रचना
सच्ची एवं सार्थक रचना।।
ReplyDeleteइसे हर रोज महसूस करता हूँ मैं
के शहर से निकल के अब गांव में सुकून न रहा।
सचमुच ! सुंदर !
ReplyDeleteसचमुच ! सुंदर !
ReplyDeleteगाँव का भोलापन तेज़ी से बदल रहा है ... आधुनिकता बदलाव के साथ साथ खोखला पण भी ला रही है ...
ReplyDeleteगाँव की वह सरलता अब कुटिलता में बदल गया है l सुन्दर रचना l
ReplyDeleteNew post भूख !
गाँव गाँव रहा मगर लोग सारे बदल गये।
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर।
गांव में अब बहुत बदलाव आने लगा है. सुंदर भाव लिए सुंदर कविता. अभिनन्दन.
ReplyDeletevery informative post for me as I am always looking for new content that can help me and my knowledge grow better.
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