Thursday 25 June 2015

एक बिना शीर्षक की कविता

जंगलों को काटते हुए ,
पहाड़ियों को खोदते हुए
क्या कभी महसूस किया तुमने
हवाओं में मौजूद संगीत को ।
पहाड़ियों पर से उतरती हुई हवा
क्या कहती है ?
जब पुरबइया चलती है तो
पेड़ कौन सा राग सुनाते हैं ?
पलाश के वृक्षों से गिरते हुए टेसू को
पलाश कौन सा गीत सुनाता है ?
क्या देखा है तुमने बैशाख में
जब महुआ जामुन को साँवली कहकर चिढ़ाता है
यह सब कभी अनुभव किया तुमने
नहीं न ?
तुम कर भी नहीं सकते
तुम्हारे लिए जंगल है इमारती लकड़ियाँ
पहाड़ हैं बौक्साइट और लौह अयस्क के भंडार
तुमने कभी इनमे जीवन महसूस नहीं किया ।
तुम्हारी संवेदना को दबा रखा है
तुम्हारी सभ्यता ने
जिसके मापदंड हैं
अच्छे कपड़े और बड़ी गाड़ियाँ ।
तुम देख नहीं पाते वृक्षों में बसे ईश्वर को
इन्हें देखने, महसूस करने के लिए
होना होगा निस्वार्थी, निश्छल
एक आदिवासी ...
नीरज कुमार नीर .................
(एक अच्छा सा शीर्षक आप बताइये )
#neeraj #adivasi
#neeraj_kumar_neer

Monday 22 June 2015

रात रानी

रात रानी क्यों नहीं खिलती हो तुम
भरी दुपहरी में
जब किसान बोता है
मिट्टी में स्वेद बूंद और
धरा ठहरती है उम्मीद से
जब श्रमिक बोझ उठाये
एक होता है
ईट और गारों के साथ
शहर की अंधी गलियों में
जहां हवा भी भूल जाती है रास्ता ।
तुम्हारी ताजा महक
भर सकती है उनमें उमंग
मिटा सकती है उनकी थकान
दे सकती है उत्साह के कुछ पल
कड़ी धूप का अहसास कम हो सकता है ।
पर तुम महकते हो रात में
जब किसान और श्रमिक
अंधेरे की चादर ओढ़े
थकान से चूर चले जाते हैं
नींद के आगोश में ।
तुम महकते हो
जब ऊंचे प्राचीरों वाले बंगले में
दमदमाती है डिओड्रेण्ट और परफ़्यूम की महक
जहां गौण हो जाता है तुम्हारा होना
तुम्हारा अस्तित्व होता है निरर्थक ।
रात रानी क्यों नहीं खिलती हो तुम
भरी दुपहरी में ?
... #नीरज कुमार नीर
#neeraj #rat_rani #umang #shahar #kisan #perfume #deodrant 

Friday 19 June 2015

साये से इक प्यार किया था

साये से इक प्यार किया था
खुशबू का व्यापार किया था

दिन जब ढला रौशनी गायब
सूरज पर एतबार किया था

मंजिल नहीं मिली कभी भी
पत्थर को हमराह किया था

जाने मेरे मन में आया क्या
आसमां में द्वार किया था

वो हाकिमे मकतल था जिसके
संग रहना स्वीकार किया था
............. नीरज कुमार नीर
#NEERAJ_KUMAR_NEER 
#gazal 

Tuesday 2 June 2015

लाला जी की लाल लंगोट

   (एक बाल कविता )

लाला जी की लाल लंगोट में
खटमल था एक लाल 
काट काट कर लाला जी को 
उसने किया बेहाल
गोल मटोल लाला जी 
गुस्से से हो गए लाल पीला 
चिल्ला कर पत्नी को आवाज दी 
नाम था जिसका लीला 
कहा है कोने में जो रखा 
काला मेरा सन्दूक 
उसमे मेरे पिताजी की 
रखी हुई है बंदूक 
बंदूक में  वो गोली भरना 
दिखे तुम्हें जो पीला 
मगर मत छूना गोली  
जो बैंगनी  है और नीला 
और उसको तो कभी ना छूना 
जिसका रंग है हरा 
सावधानी से काम करो 
सुनो मेरा मशवरा 
बंदूक निकाल कर  लीला 
गोली भर कर लायी 
लगा खटमल को निशाना 
एक गोली चलायी 
धम्म से गिरे लाला जी 
और लगे चिल्लाने  
नौकर चाकर ताऊ बेटा 
सबको लगे बुलाने 
कौन रंग की गोली भरी 
तुमने प्यारी लीला 
रंग था उसका काला 
बैंगनी या पीला 
कहा जो लीला ने सुनकर 
उड गए लाला जी के होश 
आंखे उल्टी जीभ बाहर और 
हो गए वो बेहोश
सुना लीला ने हैरत से 
मन उसका घबराया  
उसने लाला को नहीं था 
अब तक यह बताया 
उसे नहीं था रंगो का 
थोड़ा सा भी ज्ञान 
कौन हरा कौन गुलाबी 
थी लाली अंजान 
पीली वाली गोली 
खटमल मार भगाती थी 
नीली वाली गोली 
छिपकलियों को डराती थी 
लाल रंग की गोली से 
चूहे मारे जाते थे 
बैंगनी और गुलाबी से 
कौकरोच भगाये जाते थे 
पर खतरे वाली गोली का 
रंग था गहरा हरा  
लीला ने डाली थी गोली 
जिसमे बारूद था भरा 
एक खटमल के फेर में 
गयी लाला की जान 
है रंगों की पहचान जरूरी 
बच्चों लो तुम जान । 
 नीरज कुमार नीर 
Neeraj Kumar Neer 

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