Sunday, 8 November 2015

धुआँ और बादल

एक दिन मैं बन गया धुआँ
उठने लगा ऊपर हवा में
ऊपर और ऊपर
बादलों के पास
और बादलों से कहा
मैं भी बादल हूँ
बादल हंसने लगा
कहा
मुझमें पानी है
मैं देता हूँ जीवन
तुम खोखले हो
नफरत की आग से उठे हुए
तुम फैलाओगे
अंधेरा
केवल अंधेरा
मैने आश्चर्य से भरकर
अपने प्यारे देश की ओर देखा
जहां रखी जा रही थी
विकास की बुनियाद
फैलाकर
नफरत की आग
दलितों को सवर्णों के खिलाफ
अगड़ों को पिछड़ों के खिलाफ
मुसलमानो को हिन्दुओ के खिलाफ
क्या उनके विश्वास का सपना
हो जाएगा धुआं?
......... नीरज कुमार नीर
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#politics #nafrat #dalit #musalman 

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